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आर्ष संस्कृत शिक्षा बचेगी तभी वेद भी बचेंगे : धनंजय आर्य

देहरादून 12 अक्तूबर। आज आर्य समाज और वैदिक संस्थाओं को देख कर हमें लगता है कि ईश्वर कहीं गुम हो गया है। वेदवाणी भी कहीं गुम हो गई लगती है। हमें तर्क की कसौटी पर सिद्ध करना है कि वेद ही ईश्वरीय ज्ञान है। यह विचार आज रविवार 12 अक्तूबर को गुरूकुल पौंधा के आचार्य डा. धनंजय आर्य ने वैदिक साधन आश्रम, तपोवन, नालापानी के शरदुत्सव के पांचवें समापन दिवस पर बोलते हुए प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि हम कुछ माह पूर्व अमेरिका के एक आर्य महासम्मेलन में गये तो हमने देखा कि वहां उपस्थित धर्मप्रेमियों में आधे सज्जन वृद्ध होते तो उतनी ही संख्या युवाओं की भी होती है। उन्होंने आगे कहा कि आर्य समाज के पास युवाओं के लिए कोई भी ठोस कार्यक्रम नहीं है। आज हमें लगता है कि हमारे कर्णधार व नेता दिशाहीन से हो गये हैं। हमारी युवा पीढ़ी बर्बाद हो रही है। उन्होंने कहा कि हमारे गुरूकुलों के विद्यार्थियों के लिए कोई प्रभावशाली योजना बननी चाहिये। उन्होंने मार्मिक बात कही कि आर्ष शिक्षा बचेगी तो वेद भी बचंेगे। आर्य समाज में विद्वानों की संख्या कम हो रही है जो कि चिन्ता का विषय है। सभाओं का प्रचार कार्य भी न्यून व नाम मात्र को हो रहा है। यदि आर्ष शिक्षा प्रणाली व वैदिक परम्पराओं की उपेक्षा करेंगे तो हम विनाश को प्राप्त होगें। हमें अवसर तलासने हैं तथा आधुनिक विज्ञान के साथ पुरातन व आर्ष शिक्षा का समन्वय करना होगा। उन्होंने बताया कि हमारी गुरूकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय संस्था में यूजीसी स्वीकृत प्रणाली के कारण हमें निन्दित व निषिद्ध सायण, महीधर व अनेक अवैदिक वेद भाष्यों को पढ़ना और पढ़ाना पड़ता है। हम लोग संस्कृत की बात करते हैं परन्तु अपने बच्चों को सस्कृत से दूर रखकर दोहरे चरित्र का परिचय देते हैं। हमें जागरूक होना होगा। डा. धनन्जय आर्य ने आचार्य आशीष दर्शनाचार्य की प्रशंसा की जो समय-समय पर युवाओं के लिए योग आदि प्रशिक्षण शिविर लगाते रहते हैं जिसमें अच्छी उपस्थिति होती है। उन्होंने अपने वक्तव्य को विराम देते हुए कहा कि हमें युवाओं को आर्य समाज में सक्रिय करना और जोड़ना होगा जिससे आर्य समाज हरा भरा रहे।

आर्य प्रतिनिधि सभा, उत्तराखण्ड के प्रधान श्री वेद प्रकाश गुप्ता ने अपने सम्बोधन में कहा कि अब सुनने व सुनाने का वक्त चला गया। यह वक्त कुछ करने व कराने का है। उन्होंने देश के अतीत पर दृष्टि डाली और कहा कि विगत 200 वर्षों में हमारे देश का एक तिहाई से अधिक भाग हमसे कट गया है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने हमें हमारे स्वर्णिम अतीत से परिचय कराया और सभी राष्ट्रªीय समस्याओं के हल हमें दिये हैं। उन्होंने व्यंग किया कि विज्ञान ने हमें आकाश में उड़ना तो सीखा दिया परन्तु हमें जमीन पर चलना नहीं आता है। वयोवृद्ध नेता ने कहा कि आजकल धर्म में राजनीति चल रही है और भ्रष्टाचार ने देश को दबोच रखा है जो सभी राष्ट्रªवासियों को कष्ट दे रहा है। उन्होंने अपनी स्वरचित दो कवितायें भी सुनाई।

आयोजन की प्रमुख वक्ता डा. नन्दिता शास्त्री ने कहा कि देश में आर्यत्व को जागृत करने के लिए वेदों का दिग-दिगन्त प्रचार करें। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए ही इस प्रकार के शरदुत्सव आदि आयोजन किए जाते हैं। उन्होंने प्रसिद्ध संस्कृत श्लोक अपूज्या यत्र पूजयन्ते को प्रस्तुत कर कहा कि जिस देश व समाज में अपूज्यों को सम्मान मिलता है और पूज्यों को सम्मान नहीं मिलता वहां दुर्भिक्ष, मृत्यु और भय व्याप्त हो जाता है। उन्होंने कहा कि दुर्भिक्ष का मतलब है कि अन्न होते हुए भी अन्न का अभाव। इसके उन्होंने अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये। उन्होंने कहा कि देश के हमारे गरीब भाई व बहिनों को अन्न के एक एक दाने तथा वस्त्रों के लिए तरसना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि हम इन भूखे अपने देश वासियों की चिन्ता नहीं करेगें तो हम कभी भी सुखी नहीं रह सकते। उन्होंने बताया कि महाभारत काल में भारत की जनसंख्या 19 करोड़ थी परन्तु देश में गोधन 96 करोड़ था। आज देश में गोमाता और गारेचर भूमि का अभाव कर दिया गया है। उन्होंने दुःख भरे शब्दों में कहा कि यह अपूज्यों के सम्मान और पूज्यों के असम्मान के कारण हुआ है। उन्होंने देश में गोमाता की हत्या और गो मांस के निर्यात का उल्लेख कर अपनी हार्दिक पीड़ा को प्रकट किया। हमने मूल चीजों का अभाव कर दिया है और हम पैसा खर्च कर बीमारियां खरीद रहे हैं परन्तु हम अतीत और वर्तमान की व्यवस्था के कारण विवश हैं। उन्होंने कहा कि आज हमारे घरों में गाय नहीं है जिस कारण हम पैकेट वाला पाउच, कृत्रिम व मिलावटी दूध पीने को विवश है और अपने शरीर को रोगों का घर बना रहे हैं या बना लिया है। आजादी से पूर्व देश के बड़े नेताओं ने कहा था कि आजाद होने पर हम एक पंक्ति का आर्डर देकर गोहत्या को बन्द करा देगें परन्तु उनका वह कथन असत्य व झूठ सिद्ध हुआ। उन्होंने दुःख भरे शब्दों में कहा कि भाजपा शासित राज्यों में भी गोहत्या होती है। उन्होंने कहा कि हमें अपने बलिदानियों के बलिदानों पर भी विचार व चिन्तन करना है और उनके जज्बे के अनुसार स्वयं को बनाकर उन्हें श्रद्धांजलि देनी है। संस्कृत की स्थिति बताते हुए उन्होंने कहा कि सन् 1991 की जनगणना में देश में संस्कृत मातृभाषी लोगों की संख्या 74,000 थी जो सन् 2011 की जनगणना में घटकर 15,000 रह गई। उन्होंने दःुखित हृदय से बताया कि आगामी जनगणना में यह संख्या 10,000 या इससे कम हो जाती है तो सरकार की ओर संस्कृत को जो सुविधा मिल रही है वह सब समाप्त कर दी जायेगीं। उन्होंने श्रोताओं को कहा कि यह स्थिति मत आने देना। उन्होंने आगे कहा कि सब अपूज्या यत्र पूज्यन्ते के कारण व्यतिक्रम का सूचक है। हमारे अनुचित आचरण के कारण कभी सिरमौर रही संस्कृत की आज यह दुर्दशा हुई है। उन्होंने नारी के अपमान की चर्चा की और उदाहरण देकर बताया कि आज भी हमारे धर्माचार्य मानते हैं कि नारी को वेदों को पढ़ने व पढ़ाने का अधिकार नहीं है। उन्होंने वेद मन्त्र यथेमां वाचं कल्याणीमावदानी जनेभ्यः का उदाहरण देकर बताया कि वेद के अनुसार स्त्री व शूद्र तथा अन्य सभी लोगों को वेद पढ़ने का अधिकार है। विदुषी आचार्या ने बताया कि विद्वान व विदुषी उन्हें कहते हैं जो कि वेदों के विद्वान हों। आर्य जगत की वेद विदुषी आचार्या ने भगवान शब्द का अर्थ भी बताया और कहा कि देश की सारी समस्याओं का कारण अपूज्यों की पूजा व व्यतिक्रम है जिसका सुधार करना आवश्यक है। युवा विद्वान डा. विनोद कुमार शर्मा ने कहा कि किसी देश को नष्ट करना हो तो उस देश की संस्कृति को नष्ट कर दो। युवाओं में बुरी आदतों से भी देश नष्ट होता है जो कि वर्तमान में चरम पर है। उन्होंने कहा कि यदि हमारे बच्चे सुसंस्कृतज्ञ नहीं है तो हमारा धन कमाना और उन्हें अपनी पूंजी देकर जाना ठीक नहीं है। विद्वान वक्ता ने यह भी बताया कि दूषित आहार के सेवन से हमारी युवा पीढ़ी की तेजस्विता नष्ट हो गई है। ऐसे हमारे युवा देश का भविष्य नहीं बन सकते। उन्होंने कहा कि कोई भी बुराई तब तक ही चलती है जब तक की उसका विरोध नहीं किया जाता।

वैदिक साधन आश्रम, तपोवन के यशस्वी मंत्री इंजी. प्रेम प्रकाश शर्मा ने सार्वदेशिक आर्य प्रतिनिधि सभा, दिल्ली के प्रधान स्वामी आर्यवेश का परिचय दिया और कहा कि संगठन के विघटन से हमारी शक्ति क्षीण हो चुकी है। उन्होंने विघटन समाप्त कर संगठन को प्राणवान व बलशाली बनाने की आवश्यकता पर बल दिया। उन्होंने युवा लड़के लडकियों के बिना विवाह के साथ रहने पर दुख व्यक्त किया और कहा कि हमने अपने ऋषि-मुनियों के वचनों और शास्त्रों की बातों को भुला दिया है। उन्होंने कहा कि इस देश को आर्य समाज ही बचा सकता है। उन्होंने पूछा कि आर्य समाज देश कैसे बचायेगा? हम न तो विचार करते हैं और न ही कार्य करते हैं। उन्होंने कहा कि हमारे बुजुर्ग सन्ध्या व हवन से ही अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेते हैं। श्री शर्मा ंने कहा कि बाहर से कोई हमारी सहायता के लिए आने वाला नहीं है। हमारा सौगाग्य है कि स्वामी आर्यवेश जी जैसे जुझारू नेता हमारे पास है। हमें उनसे बहुत आशायें हैं। श्री प्रेम प्रकाश शर्मा ने स्वामी दिव्यानन्द जी की सेवाओं की सराहना की और कहा कि आचार्य आशीष जी के तपोवन में निवास करने से हमारा और हमारी संस्था का यश बढ़ा है। इस उद्बोधन के बाद स्वामी आर्यवेश जी के अभिनन्दन का कार्यक्रम आरम्भ हुआ। अभिनन्दन पत्र का वाचन श्री प्रेम प्रकाश शर्मा जी ने किया। और उन्हें पुष्प मालाओं से सम्मानित कर अभिनन्दन पत्र उन्हें भेंट किया। अपने व्याख्यान में स्वामी आर्यवेश जी ने अभिनन्दन के लिए धन्यवाद किया और कहा कि भविष्य में वह जितनी भी आर्य समाज की सेवा कर पायेंगे वह आपके इस अभिनन्दन का मेरी ओर से कृतज्ञता पूर्वक प्रतिदान होगा। उन्होंने अपने पूर्व वक्ता आचार्य आशीष दर्शनाचार्य के उस कथन का समर्थन किया जिसमें उन्होंने कहा था कि कि जब हम सब लोगों को आर्य बना लेंगे तो कृण्वन्तो विश्वमार्यम् का लक्ष्य पूरा हो जायेगा। उन्होंने कहा कि वैदिक धर्म त्याग वाद के सिद्धान्त पर खड़ा है न कि भोगवाद पर। मोक्ष के लिए हमें अपनी समस्त सुख सुविधाओं और मोह का त्याग कर साधना करनी होगी। उन्होंने कहा कि विज्ञान के जिस आविष्कार से मनुष्यता का भला न हो वह किस काम की है? हमें व्यष्टि और समष्टि को समझना होगा। उन्होंने कहा कि हमें सफलता तब मिलेगी जब हम वैदिक संस्कृति के अनुसार आचरण करेंगे। स्वामी दयानन्द की चर्चा कर उन्होंने कहा कि उन्होंने हमारे सामने बहुत बड़ा एजेण्डा रख दिया कि हमें विश्व का उपकार और कल्याण करना है। स्वामीजी ने अहिंसा की चर्चा कर कहा कि इसको जीवन में धारण करना होगा। हमें दूसरों की उन्नति में ही अपनी उन्नति समझनी है। उन्होंने महर्षि दयानन्द द्वारा की गई मनुष्य की परिभाषा का स्मरण भी कराया और कहा कि हमें अन्यायकारियों के बल की हानि के साथ सज्जनों की रक्षा और उनसे प्रेमपूर्वक व्यवहार करना है। उन्होंने कहा कि यदि हमारा समाज खराब होगा तो हमें शान्ति नहीं मिल सकती। स्वामी आर्यवेश जी ने समाज की वर्तमान स्थिति का चित्रण कर दुख व्यक्त किया और कहा कि इसके लिए हम ही दोषी हैं। विद्वान संन्यासी ने कहा कि समाज में आई विपत्ति को दूर करना आर्य समाज का काम है। उन्होंने समाज में एकता, कार्यों में सर्वसम्मति व सर्वानुमति की आवश्यकता बताई और कहा कि हमें अपने संगठन को चुस्त और दुरूस्त करना है। आर्य समाज एक हो, नेता एक हों, इस प्रकार की मांग सब जगह उठनी चाहिये।

स्वामी आर्यर्वेश जी के बाद देहरादून में आर्य समाज की विचारधारा को शत प्रतिशत अपने जीवन में धारण करने और आचरण में लाने वाले वयोवृद्ध विद्वान श्री चण्डी प्रसाद शर्मा ममगांई का अभिनन्दन किया। उन्हें एक अभिनन्दन पत्र भेंट किया गया जिसका वाचन श्री कृष्ण कान्त वेद शास्त्री ने किया। पुष्प मालाओं से उनका सम्मान व सत्कार किया गया। श्री शर्मा ने धर्म प्रेमियों को सम्बोधित किया और सबके धन्यवाद देने के साथ अपने जीवन के अनुभवों व कार्यों का उल्लेख किया। इसके पश्चात द्रोणस्थली कन्या गुरूकुल, देहरादून की आचार्या डा. अन्नपूर्णा ने सभा को सम्बोधित किया और कहा कि परिश्रमी व्यक्ति कभी भूखा नहीं रह सकता। उन्होंने कहा कि जो गायत्री मन्त्र का जाप करता है वह पापों से बच जाता है। ऐसा व्यक्ति ईश्वर को अपने भीतर मानकर जीवन व्यतीत करता है। जो ईश्वर में विश्वास रखता है वह कुकर्म नहीं करता। विदुषी आचार्या ने कहा हमें अपने कर्तव्यों का ज्ञान होना चाहिये। उन्होंने कहा कि वेदों में ऐसी प्रार्थनायें हैं जिनमें कहा गया है कि प्रभु हमें धर्म के, सत्य के व न्याय के मार्ग पर चलायें। उन्होंने आगे कहा कि हमने सत्य व धर्म के मार्ग को छोड़ दिया है और यही हमारे देश की समस्याओं का प्रमुख कारण हैं। उन्होंने उदाहरण देकर बताया कि देश को हरा भरा रखने के लिए हमें इस कहावत से शिक्षा लेनी होगी कि पेड़ को हरा भरा रखने के लिए पेड़ की जड़ में पानी देना चाहिये, पत्तो पर नहीं। अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने का संकल्प करने का उन्होंने आग्रह किया। उन्होंने कहा कि जिस विद्या को पढ़कर पढ़ने वालों को आत्म ज्ञान न हो वह कैसी पढ़ाई है? उन्होंने यह संकल्प लेने का भी अनुरोध किया कि हम सब भारत को महान बनाने के लिए सदाचरण करेंगे। डा. अन्नपूर्णा के व्याख्यान के बाद के बाद प्रसिद्ध भजनोपदेश श्री दिनेश पथिक ने देशभक्ति के तीन गीत, ‘मेरा रंग दे बसन्दी चोला, कर चले हम फिदा जां वतन साथियों अब तुम्हारें हवाले वतन साथियों तथा यह देश है वीर जवानों का अलबेलों का मस्तानों का इस देश का यारों क्या कहना’ प्रस्तुत कर वातावरण को देशभक्ति से परिपूर्ण कर दिया और बहुत से श्रोता साश्रु हो गये। समापन भाषण आयोजन के अध्यक्ष स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती ने दिया और कहा कि आर्य समाज के प्रचारकों में मिशनरी व समर्पण का भाव होना चाहिये। उन्होंने कहा कि प्रचारकों को सरल भाषा में प्रचार कर जन जागरण करना चाहिये। विद्वान सन्यासी ने कहा उन माता पिताओं का विशेष सम्मान होना चाहिये जिनके बच्चे गुरूकुलों में पढ़ते हैं। आयोजन में बागेश्वर से पधारे श्री किशन सिंह मलाडा का सम्मान भी किया गया जिन्होंने अपने जीवन में 2.50 लाख वृक्ष लगाये हैं और चन्दन के वृक्ष लगाने में भी सफलता प्राप्त की है। उन्होंने तपोवन में भी वृक्षारोपण कराया। अभी तक वह तीन नये वनों का आरोपण वा स्थापना कर चुके हैं। आज प्रातः काल स्वामी दिव्यानन्द सरस्वती ने साधको को योग का क्रियात्मक प्रशिक्षण दिया। इसके बाद यजुर्वेद के मन्त्रों से यज्ञ हुआ और पूर्ण आहुति के साथ सम्पन्न हुआ जिसमें सैकड़ों लोगों ने भाग लिया। यह यज्ञ पांच बड़ी यज्ञ वेदियांे में सैकड़ों श्रद्धालुओं द्वारा एक साथ किया गया। स्वामी दिव्यानन्द जी ने सभी यजमानों व यज्ञ प्रेमियों वैदिक विधि से अपना आशीर्वाद प्रदान किया। शान्ति पाठ के साथ शरदुत्सव सम्पन्न हुआ जिसके बाद सामूहिक ऋषि लंगर में सभी श्रद्धालुओं ने भोजन किया। आयोजन में स्थानीय व्यक्ति सहित देश भर से श्रद्धालु व साधक बड़ी संख्या में उत्सव में पधारे थे। पुस्तक विक्रता एवं अन्य धार्मिक उपयोग वस्तुओं के विक्रेता थी आयोजन स्थल पर उपस्थित थे।

– इं. प्रेम प्रकाश शर्मा, महामंत्री / मन मोहन कुमार आर्य
वैदिक साधन आश्रम, तपोवन, नालापानी, देहरादून।

2 thoughts on “आर्ष संस्कृत शिक्षा बचेगी तभी वेद भी बचेंगे : धनंजय आर्य

  • विजय कुमार सिंघल

    ऐसे आयोजन समय समय पर होते रहने चाहिए.

    • Man Mohan Kumar Arya

      धन्यवाद श्री विजय जी।

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