कविता

है कि नहीं ….

है कि नहीं ….
बहुत गुस्सा में हैं
है कि नहीं
प्रेमी या प्रेमिका बे-वफ़ा निकले ….
पत्नी या पति मगरूर -जल्लाद निकले ….
स्वाभाविक प्रतिक्रिया है ,मेरे दोस्त ,
है कि नहीं

कोसो ना ,
पानी पी-पी के कोसो ….
जितनी गालियाँ देनी है , दो
उनका नाम लेकर दो ना …
एक की गलती की सज़ा ,
सारे कौम को क्यूँ दे रहे …
ना-इंसाफ़ी है ….
है कि नहीं ….

औरत के नाम पर कलंक ,
या …
सारे मर्द एक जैसे कहने से
हमारे और रिश्ते भी तो
उसी दायरे में आ जाते हैं .…
है कि नहीं ….
माँ -मौसी ,दीदी-बुआ ,भाभी-चाची ,ताई -मामी ….
ताऊ-फूफा ,मौसा-चाचा ,मामा-पापा ,भाई-भतीजा ….
सभी को भी एक साथ
कोसना-श्रापना चाहेंगे ,नहीं ना ,
है कि नहीं

माँ अच्छी या बुरी निकली तो
लो आप तो यशोदा-कैकई को ले कर बैठ गए ….
दोस्त मेरे
हमारे औलाद विष्णु अवतार नहीं हैं ,
है कि नहीं .…
बेटा लायक या ना-लायक निकला ,
तो आप श्रवण को याद करने लगे ….
जहां तक मेरी अल्प-बुद्धि कहती है ,
कि वो शादी-शुदा नहीं और अल्पायु थे
है कि नहीं .…

बहू तो सभी को तभी भाती है
जब वो सास को चौके से
छुटकारा दिला कर
बिस्तर पर बैठा दे
डोली से उतरते ही ….
है कि नहीं ….
ननद के नखरे उठा उसे सजा-सवांर दे
डोली से उतरते ही ….
है कि नहीं
देवर के कपड़े धो सहेज दे
डोली से उतरते ही ….
है कि नहीं
ससुर को वैसे तो
कोई प्रॉब्लेम नहीं होती लेकिन ध्यान तो देना ही चाहिए
डोली से उतरते ही …।
है कि नहीं ….
छोटे से पौधे को आप गमले में लगाते हैं तो
पूरा ध्यान(care) देते हैं ….
है कि नहीं ….

कड़ी धूप में नहीं रखते
कहीं जल ना जाए ,
है कि नहीं ….
ज्यादा जल नहीं डालते
कहीं गल ना जाये ,
है कि नहीं ….

बहू तो विशाल वृक्ष के रूप में आई है….

अतिरिक्त (Extra) देखभाल(Care) की जरूरत होगी ना
पनपने फूलने के लिए

है कि नहीं ….
बोलो – बोलो है कि नहीं …

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “है कि नहीं ….

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. इसका सन्देश स्पष्ट है.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      आभारी हूँ आपकी

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