कविता

चलो सोचा जाए

चलो वादा रहा
आँचल सामने है
उतारो देखें
कितना भर
सकता है
थक ना जाना
थकना मना होता है
शीत युद्ध का शौक है ना।

~~

चलो आजमा लो
कौन टूट कर
बिखरता है
बिखरने वाला ही
जीतता है क्यूँ कि
उस हद तक
वही लड़ सकता है

~~

चलो झांको अंतःकरण
परीक्षा देने वाला
रम जाता है
उत्तर ढूंढ़ ने में
कहाँ फुर्सत होती है
सोचने में समय गवां दे
क्या गलत किया
क्या सही किया
बदला ना लेने वाला
बहादुर होता है

~~

चलो सोचा जाए
क्या खोये ,क्या पाए
कौन किसके पीछे
कैसा समय गंवा दिया
सत्ता ना मानने वाला
अपने कर्म पर ध्यान दिया
अपने पर … अपने पर
छोटी-छोटी बातों पर
उसने अपनी ही
प्रसन्नता के खजाना
लुटने नहीं दिया

~~

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

2 thoughts on “चलो सोचा जाए

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी लगी .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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