धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

शंकराचार्य निश्चलदास का बयान

शंकराचार्य निश्चलदास का बयान कि दलितों को मंदिर में प्रवेश की धर्मशास्त्रों में मनाही हैं हिन्दू समाज के किसी प्रतिष्ठित व्यक्ति द्वारा दिया गया अत्यंत खेदपूर्ण बयान हैं। अगर हिन्दू समाज का कोई सबसे बड़ा शत्रु हैं तो वह इस प्रकार की पिछड़ी सोच हैं जो हिन्दू समाज की एकता औरसंगठन  संगठन में सबसे बड़ी बाधक हैं। इसी मनोवृति के चलते लाखों हिन्दू भाई सदा के लिए हिन्दू समाज का त्याग कर विधर्मी बन गए। वेद, ब्राह्मण, दर्शन,उपनिषद् आदि किसी भी ग्रन्थ में ऐसा कहीं भी नहीं लिखा की दलितों को मंदिर में प्रवेश निषेध हैं। इसका मुख्य कारण भी यही हैं कि वेदादि शास्त्रों में निराकार ईश्वर की उपासना का वर्णन हैं जिसके लिए किसी मंदिर विशेष की आवश्यकता नहीं हैं क्यूंकि ईश्वर की प्राप्ति हमारे हृदय में आत्मा के भीतर ही संभव हैं। जहाँ पर ईश्वर के चिंतन को न कोई रोक सकता हैं और न ही किसी प्रकार की आने-जाने कि मनाही हैं।

वेद आदि शास्त्रों में शूद्रों के विषय में कथन को जानने की आवश्यकता इन धर्माचार्यों को इस समय सबसे अधिक हैं क्यूंकि समाज का मार्गदर्शन करना इनका प्रधान कर्म हैं और जो खुद अँधा होगा वह भला क्या किसी को मार्ग दिखायेगा। वेदों में शूद्र अस्पृश्य अथवा हेय नहीं हैं अपितु शूद्र को तपस्या, सत्कार, प्रीति, शुभ कर्म करने का स्पष्ट उपदेश हैं।

1. तपसे शुद्रम- यजुर्वेद 30/5
अर्थात- बहुत परिश्रमी ,कठिन कार्य करने वाला ,साहसी और परम उद्योगों अर्थात तप को करने वाले आदि पुरुष का नाम शुद्र हैं।
2. नमो निशादेभ्य – यजुर्वेद 16/27
अर्थात- शिल्प-कारीगरी विद्या से युक्त जो परिश्रमी जन (शुद्र/निषाद) हैं उनको नमस्कार अर्थात उनका सत्कार करे।
3. वारिवस्कृतायौषधिनाम पतये नमो- यजुर्वेद 16/19
अर्थात- वारिवस्कृताय अर्थात सेवन करने हारे भृत्य का (नम) सत्कार करो।
4. रुचं शुद्रेषु- यजुर्वेद 18/48
अर्थात- जैसे ईश्वर ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करता हैं वैसे ही विद्वान लोग भी ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र से एक समान प्रीति करे।
5. पञ्च जना मम – ऋग्वेद
अर्थात पांचों के मनुष्य (ब्राह्मण , क्षत्रिय, वैश्य, शुद्र एवं अतिशूद्र निषाद) मेरे यज्ञ को प्रीतिपूर्वक सेवें। पृथ्वी पर जितने मनुष्य हैं वे सब ही यज्ञ करें।
इसी प्रकार के अनेक प्रमाण शुद्र के तप करने के, सत्कार करने के, यज्ञ करने के वेदों में मिलते हैं।

वाल्मीकि रामायण से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण

मुनि वाल्मीकि जी कहते हैं की इस रामायण के पढ़ने से ()स्वाध्याय से ) ब्राह्मण बड़ा सुवक्ता ऋषि होगा, क्षत्रिय भूपति होगा, वैश्य अच्छा लाभ प्राप्त करेगा और शुद्र महान होगा। रामायण में चारों वर्णों के समान अधिकार देखते हैं देखते हैं। -सन्दर्भ- प्रथम अध्याय अंतिम श्लोक
इसके अतिरिक्त अयोध्या कांड अध्याय 63 श्लोक 50-51 तथा अध्याय 64 श्लोक 32-33 में रामायण को श्रवण करने का वैश्यों और शूद्रों दोनों के समान अधिकार का वर्णन हैं।

महाभारत से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण

श्री कृष्ण जी कहते हैं –

हे पार्थ ! जो पापयोनि स्त्रिया , वैश्य और शुद्र हैं यह भी मेरी उपासना कर परमगति को प्राप्त होते हैं। गीता 9/32

महाभारत में यक्ष -युधिष्ठिर संवाद 313/108-109 में युधिष्ठिर के अनुसार व्यक्ति कूल, स्वाध्याय व ज्ञान से द्विज नहीं बनता अपितु केवल आचरण से बनता हैं।
कर्ण ने सूत पुत्र होने के कारण स्वयंवर में अयोग्य ठह राये जाने पर कहा था- जन्म देना तो ईश्वर अधीन हैं, परन्तु पुरुषार्थ के द्वारा कुछ का कुछ बन जाना मनुष्य के वश में हैं।
चारों वेदों का विद्वान , किन्तु चरित्रहीन ब्राह्मण शुद्र से निकृष्ट होता हैं, अग्निहोत्र करने वाला जितेन्द्रिय ही ब्राह्मण कहलाता हैं- महाभारत वन पर्व 313/111
ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र सभी तपस्या के द्वारा स्वर्ग प्राप्त करते हैं।महाभारत अनुगीता पर्व 91/37
सत्य,दान, क्षमा, शील अनृशंसता, तप और दया जिसमें हो वह ब्राह्मण हैं और जिसमें यह न हों वह शुद्र होता हैं। वन पर्व 180/21-26

उपनिषद् से शुद्र के उपासना से महान बनने के प्रमाण

यह शुद्र वर्ण पूषण अर्थात पोषण करने वाला हैं और साक्षात् इस पृथ्वी के समान हैं क्यूंकि जैसे यह पृथ्वी सबका भरण -पोषण करती हैं वैसे शुद्र भी सबका भरण-पोषण करता हैं। सन्दर्भ- बृहदारण्यक उपनिषद् 1/4/13

व्यक्ति गुणों से शुद्र अथवा ब्राह्मण होता हैं नाकि जन्म गृह से।

सत्यकाम जाबाल जब गौतम गोत्री हारिद्रुमत मुनि के पास शिक्षार्थी होकर पहुँचा तो मुनि ने उसका गोत्र पूछा। उन्होंने उत्तर दिया था की युवास्था में मैं अनेक व्यक्तियों की सेवा करती रही। उसी समय तेरा जन्म हुआ, इसलिए मैं नहीं जानती की तेरा गोत्र क्या हैं। मेरा नाम सत्यकाम हैं। इस पर मुनि ने कहा- जो ब्राह्मण न हो वह ऐसी सत्य बात नहीं कर सकता। सन्दर्भ- छान्दोग्य उपनिषद् 3/4

आपस्तम्ब धर्म सूत्र 2/5/11/10-11 – जिस प्रकार धर्म आचरण से निकृष्ट वर्ण अपने से उत्तम उत्तम वर्ण को प्राप्त होता हैं जिसके वह योग्य हो। इसी प्रकार अधर्म आचरण से उत्तम वर्ण वाला मनुष्य अपने से नीचे वर्ण को प्राप्त होता हैं।

जो शुद्र कूल में उत्पन्न होके ब्राह्मण के गुण -कर्म- स्वभाव वाला हो वह ब्राह्मण बन जाता हैं उसी प्रकार ब्राह्मण कूल में उत्पन्न होकर भी जिसके गुण-कर्म-स्वाभाव शुद्र के सदृश हों वह शुद्र हो जाता हैं- मनु 10/65

इस प्रकार से वैदिक वांग्मय में शूद्रों को सभी अधिकार वैसे ही प्राप्त हैं जैसे ब्राह्मण आदि अन्य वर्णों को प्राप्त हैं फिर इस प्रकार की बयानबाजी कर अपनी अज्ञानता का प्रदर्शन करने में किसी का हित नहीं हैं। आशा हैं धर्म की मुलभुत परिभाषा को समझ कर हमारे धर्माचार्य समाज का मार्गदर्शन करेंगे।

डॉ विवेक आर्य

2 thoughts on “शंकराचार्य निश्चलदास का बयान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विवेक भाई , रोना तो इस बात का है कि हमारे धर्म गुरु कभी समझ ही नहीं पाए कि हिन्दू धर्म का कितना नुक्सान हुआ है इन दकिअनूसी विचारों के कारण . करोड़ों दलित इस बुरे विचारों के कारण धर्म छोड़ कर मुसलमान या बोधि हो गए . हज़ारों वर्ष पुराने हिन्दू सिद्धांत इस नए ज़माने से मैच नहीं करते . लेकिन हम बदलते ही नहीं .

  • जो शुद्र कूल में उत्पन्न होके ब्राह्मण के गुण -कर्म- स्वभाव वाला हो वह ब्राह्मण बन जाता हैं उसी प्रकार ब्राह्मण कूल में उत्पन्न होकर भी जिसके गुण-कर्म-स्वाभाव शुद्र के सदृश हों वह शुद्र हो जाता हैं- मनु 10/65 dr vivek aary ji ka lekh padha ..unhone sab sahi likha hai …………samaj ki vyvstha ko banaye rakhane ke liye vrn vyvstha banayi gayi hai ………jaese ghar me ek hall ,ek bed room ,ek kitchen ,ek bath room ,ek aangan ,hota hai …..in sab ko milakar hi use ghar kahaa jata hai ..vaese hi sabhi vrn milkar ..manav kahalte hai

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