गीतिका/ग़ज़ल

कली

 

उसने कहा मेरे लिए भी लिखो ग़ज़ल
समय को काफ़ी वक्त लगा ढलने में ग़ज़ल

इस दरम्यान वह रूठ कर कहीं चली गयी
दिल के आईने से न पाया पर मैं उसकी परछाई बदल

कभी शब्द नहीं मिले कभी तुक नही मिला
खाक छानते रहा मुझे ढहा मेरे सपनो का महल

दिन में एक बार फिर कहा महीने मे एक दफे मिलना
दुर्लभ हो गया उससे अब मेल जो कभी था सरल

खूबसूरत लगती है दूर शिखर पर जमी हुई बरफ
कोहरे से घिरी रही तुम देख न पाया तेरा रूप असल

सांझ के सूरज की तरह तुम भी खो गयी कहीं
खिलने से पहले मेरे ख्यालों की कली दी गई मसल

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

3 thoughts on “कली

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी ग़ज़ल , बहुत ऊंचे विचार . धन्यवाद खोरेंदर भाई .

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