सामाजिक

मातृभाषा के साथ संस्कृति की भी विदाई

“अतिथि देवो भव” के संस्कारों से ओतप्रोत आपके घर में जब कोई अतिथि किसी भी प्रयोजन से आता है तो अक्सर आप सहित घर के सारे सदस्य उनका स्वागत सत्कार करते हैं I घर के छोटे सदस्य उनके सामान, आचार व्यवहार आदि से प्रभावित भी होते हैं और ललचाते भी हैं I उनके जाने के कुछ दिनों बाद सबकुछ जस का तस हो जाता है I जरा सोचिए ! जब कोई मेहमान आपके घर आए और कुछ दिनों बाद आपको विरोध का अवसर दिए बिना ही चुपचाप घर से हमेशा के लिए बाहर निकल जाने के लिए विवश कर दें, तब क्या आपकी छाती पर सांप नहीं लोटेंगे ? तब क्या आप छाती कुटा नहीं करेंगे, क्या दुनिया भर में उसका रोना नहीं रोएंगे, उसे बदनाम करने के सभी प्रकार के हथकंडे नहीं अपनाएंगे ? परन्तु अफसोस की बात है कि आपके साथ कई सालों से ऐसा हो रहा है और आप अनजान हैं और पूरी तरह बेखबर हैं I

जी हां, जब से अंगरेजी आपके घरों में आई है, आपकी सांस्कृतिक पहचान, आपका स्वास्थ्य, आपके नैतिक मूल्य, आपकी सांस्कृतिक धरोहर सब कुछ दांव पर लग चुका है, फिर भी आपको इसका ज़रा सा भी आभास नहीं है, और इस कारण से उसका विरोध का तो प्रश्न ही आपके दिलोदिमाग में खड़ा हो पा रहा है I हां, इन सबके अनायास खो जाने से आपके जीवन में जिन मुसीबतों की बाढ़ आ गई हैं, उनसे आप हतप्रभ भी हैं, दुखी भी है, आपका दिन रात का सुकून गायब हो गया है परन्तु आप निरीह हो चुके हैं I क्योंकि इसे आप जान ही नहीं पा रहे हैं कि यह मुसीबतों का संसार आपको मिला किस कारण से है I आप तो इसे जमाने की हवा समझ कर चुपचाप मनमसोस कर सह रहे हैं I या फिर किस्मत के फेर को दोषी ठहराकर इत्मीनान से नयी मुसीबतों की प्रतीक्षा में बेचैन से बैठे हैं, हाथ पर हाथ धरकर I

अंगरेजी: मुसीबत अकेली नहीं आती

यह एक बहुप्रचिलित कहावत है कि मुसीबत अकेली नहीं आती है I महात्मा गांधीजी, महामना मदनमोहन मालवीय, पुरुषोत्तमदास टंडन, भारतेन्दु हरीश्चन्द्र, डॉ.हेडगेवार, माधवराव सदाशिवराव गोलवरकर, राममनोहर लोहिया, जैसे अनेक संतों को यह अनुमान था कि अंगरेजी देश में शिक्षा का माध्यम बनी तो मुसीबतों के पहाड़ों से निपटना असम्भव हो जाएगा I परन्तु उनके मातृभाषा के प्रति अनुरोध या आग्रह को मैकाले के षड्यंत्र और हमारी आपराधिक घोर अनदेखी तथा मूर्खता ने लील लिया I वर्तमान में भी देश के हर कोने में मातृभाषा के पक्ष में वातावरण बनाने के प्रयास करने वाले सत्पुरुष प्राणपण से लगे हुए हैं I

इस आलेख श्रृंखला के माध्यम से उन मुसीबतों के बारे में जानने का प्रयास करेंगे, जिन्हें हमने अंगरेजी की बजाय जमाने की हवा से आयातीत मान लिया है, यह सम्भव है कि कुछ तो अंगरेजी के साथ हमें सहज ही मिला हो और कुछ मुफ्त के गिफ्ट के चक्कर में हमने लपक लिया हो I

दिनचर्या, रात्रिचर्या और ऋतुचर्या तथा प्रचलित परम्पराओं के साथ – साथ या सहारे – सहारे इस मुसीबत-कथा का अखण्ड पाठ करेंगे I आपको तार्किक लगे तो इसे उन तक पहुंचाएं, जिन्हें आप अपना समझते हैं I यदि अतार्किक लगे तो जय रामजीकी I

हमारे यहां सुबह जल्दी जागने के निर्देश रहे हैं I भले ही नेट पर विभिन्न देशों के मूर्धन्य वैज्ञानिक अपने दीर्घकालीन और वृहद् वैज्ञानिक अध्ययनों के प्रकाश में भारत की इस परम्परा के पक्ष में मुखर होकर बता रहे हों, परन्तु यदि हमारे बच्चों का स्कूल सुबह आठ बजे का भी हो तो हम स्कूल प्रबन्धन को कोसते हैं I रविवार को हमारे लाड़ले यदि ग्यारह बजे बिस्तर का त्याग करते हैं तो हम शान बघारने लगते हैं I

अब जरा इस परम्परा के कुछ लाभों पर दृष्टि डालने का प्रयास करते हैं –

  • सुबह की वायु प्रदूषण से मुक्त और ताज़गी से भरपूर होती है I शुद्ध वायु मिलने से मस्तिष्क की उर्वरा शक्ति भी अधिकतम होती है I
  • यही कारण है कि इससमय बहने वाली वायु को आयुर्वेद में अमृततुल्य कहा गया है I
  • टेक्सास यूनिवर्सिटी के शोध के अनुसार जो बच्चें जल्दी जागते हैं, वे पढ़ाई और अन्य मामलों में दूसरे बच्चों से बेहतर प्रदर्शन करते हैं I
  • 6436 लोगों पर किए गये अध्ययन के निष्कर्ष के अनुसार भावनाओं के मामले में जल्दी जागने वाले ज्यादा स्थिर होते हैं I
  • आस्ट्रेलिया में 2011 में 2200 तरुणों पर किए गये एक अध्ययन के अनुसार देर रात तक जागकर देर से जागने वाले मोटापे से दो गुना अधिक ग्रस्त होते हैं I
  • अमेरिकन सायकोलाजिकल जर्नल “इमोशन” में प्रकाशित ताज़ा अध्ययन में बताया गया है कि ऐसे लोग अधिक प्रसन्नचित्त रहते हैं और जरा जरा सी मुसीबतों से निराशा, अवसाद या आत्महत्या के चंगुल में नहीं फंसते हैं I
  • शोधकर्ताओं का निष्कर्ष है कि जल्दी बिस्तर त्यागने वालों का मूड बेहतर होता है I
  • वे बीमार भी कम पड़ते हैं क्योंकि उनका इम्यून तंत्र बेहतर होता है I
  • इस समय रक्त में कार्टिसोल की मात्रा भी अधिक होती है, जो तनाव प्रबन्धन का हारमोन है I
  • चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस समय पिट्यूटरी और पिनीयल ग्रंथि से विशेष रसायन निकलते हैं I ये रसायन हमारे शरीर की रोगों से लड़ने की शक्ति (इम्यूनिटी) तथा स्मरण शक्ति को बढाते हैं I
  • इस शान्त शुद्ध और एकान्त वातावरण में यदि पढ़ाई की जाए तो समझने (अंडरस्टेडिंग) और ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है तथा एकाग्रता और बड़ी हुई स्मरण शक्ति का लाभ हमें प्राप्त होता है I
  • इन लाभों के प्रकाश में ज़रा आप समझने का प्रयास अवश्य करिएगा कि देर से जागने के कारण क्या क्या मुसीबतें आपको और आपके लाड़लों को फ्री फण्ड में मिल रही हैं I
  • चलिए ! हम ही कुछेक के बारे में बता देते हैं, तुनकमिजाजी (शार्ट टेम्पर्ड), निराशा, अवसाद, कमजोर संघर्ष शक्ति, मोटापा, क्षीण रोग प्रतिरोधक तन्त्र, गुस्सा, अस्थिरता, पढ़ाई में कमतर प्रदर्शन, जीवन मूड आधारित यानी मूडी I
  • यदि आप जल्दी जागने के और भी फायदे जानना चाहते हैं तो गूगल में जाइये और सर्च कीजिये – “33 एडवांटेज ऑफ़ रायजिंग अर्ली”

One thought on “मातृभाषा के साथ संस्कृति की भी विदाई

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख, डॉ साहब.

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