कहानी

पक्का इरादा

प्रीति और विनोद अपने शादी शुदा  दोस्त मीना और रवि से मिलने जा रहे थे।  वो कॉलेज के समय के दोस्त थे। ग्रेजुएशन पूरी करने के बाद वह सभी अपनी-अपनी ज़िंदगियों में व्यस्त हो गए थे। आज  लगभग डेढ़ साल बाद वो उन दोनों से मिलने जा रहे थे | रवि और मीना एक दूसरे को बहुत  चाहते थे , उनके  परिवार वाले भी  नए ज़माने की सोच रखते थे, इस लिए दोनों परिवार वालों ने उनकी शादी की सहमति दे दी थी |  फिर  क्या था उनकी शादी बहुत धूमधाम से हुई , प्रीति , विनोद और उनके सारे दोस्त  शादी पर आये  थे और सभी, इतनी शानोशौकत वाली शादी देख कर दंग रह गए थे ।
प्रीति और विनोद उनकी शादी की बातें सोचते-सोचते न जाने कब उनके घर के बाहर पहुंच गए उन्हें पता ही नहीं चला । दरवाज़े की घंटी बजाते ही दरवाज़ा खुला , सामने मीना खड़ी थी| रविवार का दिन था, विनोद भी घर पर ही था ।  मीना तो जैसे उन दोनों को देख कर ख़ुशी से उछल पड़ी और उन दोनों को बहुत प्यार से  अंदर लाते हुए रवि को आवाज़ देते हुए बोली ” देखो रवि, कौन आया है ! प्रीति और विनोद अंदर दाखिल हुए , घर की हालत कुछ अच्छी नहीं थी।  दीवारों पर जगह-जगह सीमेंट उखड़ा हुआ था , दूसरे कमरे में रवि के पिता जी  बिस्तर पर पड़े हुए थे | रवि अपने एक साल के बेटे को बांहों में उठाये अंदर आया तो अपने कॉलेज के दोस्तों को देख खुश हो गया, विनोद को गले लगा कर और प्रीति को हालचाल पूछ कर , उनके पास ही सोफे पर बैठ गया । प्रीति , रवि से उसके बेटे लेते हुए बोली ” कितना प्यारा है आपका बेटा,  बिलकुल तुम पर गया है,  मीना क्या नाम रखा है बेटे का ? ” अनमोल” मीना ने उत्तर दिया।” बहुत प्यारा नाम रखा आप ने बच्चे का ”  प्रीति ने कहा और फिर उसे गोद में बिठा कर उससे बातें करने लगी ।
मीना जल्दी से चाय पानी का बंदोबस्त कर लाई | वे चारों दोस्त  कॉलेज के दिनों की , बातें याद कर के अपने पुराने दिनों को जैसे  फिर से जीने लगे | चाय का घूंट भरते हुए , बातों-बातों में  विनोद ने दोनों को कहा ” यार हम आप  दोनों के  पास एक ज़रूरी काम से आए हैं। दरअसल  हमने शादी करने का फैसला किया है… आप, दोनों से हमें सलाह चाहिए।  तुम दोनों की शादी कितनी शानो-शौकत से  हुई थी ,बड़ा हॉल  ,मशहूर सिंगर ,  रोटी-पानी तो कमाल का  था।  हम भी अपनी शादी ऐसी ही धूम धाम से करना चाहते है , हमें भी बताएं कि हम शादी का प्रबंध  कैसे करे ?
मीना और रवि ने एक दूसरे की तरफ  निराशा  भरी निगाहों से देखा और  मीना ने कहा ” छोड़ो  इन सब  दिखावों को …हम तो अपने प्रेम विवाह  को लेकर इतने खुश थे कि सारे जहां को ही दिखाना चाहते थे, कि हम प्यार के पंछी अपना आशियाना बसाने जा रहे है। अपने आस-पास इतनी शानोशौकत वाली शादियां देख कर हम भी उस चकाचौंध के शिकार हो गए , इन दिखावों का दुष्परिणाम हम  आज तक भुगत रहे हैं।  शादी पर  मेरे परिवार और रवि के परिवार  के सभी  रिश्तेदार , दोस्त  और जो भी जानने वाले थे , सभी को शादी का न्योता दिया गया।   मेहमानों  की संख्य बढ़ जाने  के कारण,  बहुत बड़ा वेडिंग  हॉल  बुक करवाना पड़ा, खाने में छत्तीस प्रकार का भोजन बहुत महंगा पड़ा….   बढ़िया डी जे, ऊपर  से मशहूर गायक के  प्रबंध में हज़ारों का खर्चा हुआ सो अलग…. फिर रवि की तरफ से शादी की  बहुत बड़ी पार्टी दी  गई।
कुछ ही  महीनों बाद रवि की बहन, यानी कि मेरी ननद की शादी भी उसी  शानो-शौकत से की गई… हमारे  माता पिता द्वारा कड़ी मेहनत से कमाया धन और हमारी मेहनत की जमा पूंजी सब बरबाद हो गई  | किसी कारणवश रवि की नौकरी भी चली गई ।  हमारी बुरी किस्मत, कि हमारे पापा जी को कैंसर  की बीमारी ने आ घेरा , हमने पैसा बरबाद करते वक्त अपने भविष्य के बारे में सोचा ही नहीं  ….. पापा जी की बीमारी  के इलाज के लिए  अब घर गिरवी रख कर पैसा उधार लेना पड़ा  इतनी महंगाई में गुज़ारा करना बहुत मुश्किल है”  यह सारी बात बताते हुए मीना रुक गई  और उसकी आंखों से आंसू बहने लगे |
तभी रवि बात को जारी रखते हुए बोला ” अब हम पछता रहे हैं… अगर हम झूठी शानो-शौकत के लिए मेहनत से कमाया धन , इस तरह बरबाद न करते, तो आज हम कर्ज़ में न  डूबे होते।  अगर हमारी सलाह मानो तो शादी सादे ढंग से ही करो और मेहनत से कमाया धन अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए बचा कर रखो।
प्रीति और  विनोद के लिए उनके दोस्तों की ये कीमती सलाह , उनके  आने वाले भविष्य को सुरक्षित कर गई।  उन्हों ने अपने दोस्तों का शुक्रिया अदा किया और सादा विवाह करने का पक्का इरादा कर लिया।

 

6 thoughts on “पक्का इरादा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छी कहानी है , इस से सीख लेनी चाहिए . जो अमीर लोग हैं उन के लिए तो धन खर्च करना कोई माने नहीं रखता लेकिन गरीबों के लिए मुसीबतों का कारण बन जाता है . सिर्फ एक दिन की खातिर झूठे दिखावे पर लाखों रुपैय खर्च करना मुर्खता है . १९६७ में मैंने अपनी शादी में दस बराती ले कर गिया था . कोई दाज दहेज़ नहीं लिया , न कोई दिखावा किया .कुछ लोग हमारी पीठ पीछे बातें करते थे , कुछ ने हमारी शादी पर लैक्चर दिए और इस शादी को सराहा . मेरे इस फैसले का एक ही कारण था , हम चार दोस्तों ने कालिज में वादे किये थे कि हम शादी दस ब्रातिओं के साथ करेंगे . एक अपना वादा नहीं निभा सकता लेकिन तीनों ने यह इन्कलाब कर दिखाया . मैं कह सकता हूँ कि मेरा परिवार सुखी परिवार है और हमारे बच्चे भी उनके अपने बच्चों की शादिआन इस मेरी परम्परा को आगे जारी रखेंगे .

    • मनजीत कौर

      शुक्रिया भाई साहब आप ने ठीक कहा सिर्फ एक दिन की खातिर झूठे दिखावे पर लाखों रुपैय खर्च करना मुर्खता है खास कर लड़की वालो पर ये बोझ बहुत बड़ जाता है ऐसे ही दिखावो की वजय से दहेज़ कुप्रथा चलती आ रही है । आप ने अपनी शादी सादे ढंग से और बिना दहेज़ के की, सुन कर बहुत ख़ुशी हुई आप को मेरा प्रणाम , काश आज के सभी नव युवक भी ऐसा इंकलाब ला सके , आप की तरह सादे विवाह का प्रण ले और बिना दहेज़ के शादी करने का फैंसला करे तो दुनिया में हर घर में खुशहाली आ सकती है |

    • मनजीत कौर

      होंसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया भाई साहब |

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कहानी, बहिन जी.

    • मनजीत कौर

      होंसला अफजाई के लिए बहुत शुक्रिया भाई साहब

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