कविता

मुझे यही एक आस है

सब कुछ पास है

फिर क्यों लगता है

कुछ खोया सा है

अरसा हुआ तुझे

विदा किये

फिर क्यूँ तू

मेरे आस -पास है

नज़र टिकी है

दरवाज़े पर

हर आहट

बस तेरी ही आस है

ये तकदीर की ही तो

बात है तू रूठा है

लेकिन

मुझे मना लेगा

मुझे यही एक आस है

 

 

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।

4 thoughts on “मुझे यही एक आस है

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बहुत ही सुंदर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत अच्छी कविता उपासना जी , आस रखना ही तो जीवन की निशानी है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब, उपासना जी.

  • मनजीत कौर

    वाह ! उपासना जी बहुत सुन्दर !

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