लघुकथा

भरोसा

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एक पुराने खंडहर में एक कबूतर और एक कबूतरी रहते थे , दोनों में बङा प्यार ,बङी समझदारी ? वाकी जोङे जो थे उन्हे बङा जलन होती देख के ! दोनों के बीच समझौता था …..कि कबूतर घर और बच्चों की देखभाल करेगा और कबूतरी जो है दाना पानी भोजन आदि की व्यवस्था करेगी ,येसे ही दिन गुजरते गये लेकिन कबूतरी एक बात को लेकर बङा परेशान रहती उनके बच्चे जीबित ही नहीं रहते …कभी घोंसले से गिर जाते या कभी कोई बङा जीव आकर उन्हें खा जाता.और कबूतर कह देता ,अरे बङे होके उङ ही तो जाते तू नाहक ही परेशान होती है , कबूतरी को बङा अटपटा लगता खैर ……
एक दिन कबूतरी ने सोचा ऐसा क्या हो जाता है चलो पता लगायें , एक दिन कबूतरी दाना लेने गई ही नहीं और वहीं कही खंडहर में छिप गई ,कुछ देर बाद देखती क्या है कि एक दूसरी कबूतरी उङके आई और कबूतर को उङा ले गई , जाते जाते जो कबूतर कह रहा था वो भी उसके कान में पङ गया कि…. केवल पाँच चक्कर लगा कर घोंसले में आ जायेगे क्योंकि तब तक कबूतरी के आने का समय हो जाता था और तब तक तू चली जाना , उस दिन जब कबूतर बापस आया तो कबूतरी को मौजूद देख हैरत में पङ गया ??
लेकिन कबूतरी भी अकल की तेज वो मानने वालों में होता तो जाता ही क्यों ,उसनें कुछ कहा ही नहीं !!!
लेकिन दूसरे दिन से एक नियम बदल गया था ,…..अब कबूतरी घर पर रहने लगी थी और कबूतर दानें की खोज में जाता था , उस दिन से उस घर में सब कुछ पहले ही जैसे था मगर एक चीज़ गुम हो गई थी………भरोसा !!!
कहते हैं ये जिस जगह भी खोता है वहाँ कभी भी नहीं मिलता ?????
वाकी खोई हुई सारी चीजें उसी जगह मिल जाती हैं ……..

3 thoughts on “भरोसा

  • शशि कान्त त्रिपाठी

    बहुत अच्छी लघुकथा पढने को अकस्मात मिली ।
    जीवन में भरोसा बहुत बडी़ चीज है ।इसके उठ जाने पर जीवन नीरस हो जाता है ।
    नवम सरल सबसन छल हीना
    मम भरोस हिय हरस न दीना ।

  • प्रदीप कुमार तिवारी

    sach me agar bharosa na ho to jindagi jahnnum ho jati hai, aur bharosa toot jaye to…………………………..aap log samajhdar hai mai kya kahu.

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघु कथा !

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