गीतिका/ग़ज़ल

ओर छोर

 

तेरी याद जाए तो फुरसत मिले
तू रूबरू आए तो फ़ुरसत मिले

सागर की ओर बहती है नदियाँ
कोई हसरत न हो तो फुरसत मिले

वो आँखों मे चाँद सा समाए रहते हैं
प्यार में फरेब हो तो फुरसत मिले

निरंतर घूमती रहती है यह धरती
धूरी न हो तो धरा को फुरसत मिले

जुनुने इश्क़ आकाश की तरह है
कोई ओर छोर हो तो फुरसत मिले

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “ओर छोर

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

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