कविता

हार नहीं मानो तुम….

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हार नहीँ मानो तुम
हार नहीँ मानो तुम।

टूटे मन से खडा कोई नहीँ होता,
यूँ तो अंबर से बडा कोई नहीँ होता,
छोटे छोटे पंछी तिनके जमा किया करते हैँ,
घरौँदे पेडोँ पर बना लिया करते हैँ,
मेघ भी इकट्ठे होकर बरसाते सावन है,
एक राम के साहस से डरते दस रावन है,
बाधाओँ के आगे बढने की ठानो तुम,
हार नही मानोँ तुम।
हार नहीँ मानोँ तुम।।

छोटी सी नौका भी माल खूब ढोती है,
सिँधु की लहर धरती के पाँव धोती है,
आकाश भी झुकता है पर्वत के आने पर,
वन बाग खिलखिलाते हैँ कोयल के गाने पर,
मन से मन को जोडो जीवन को पहचानो तुम,
हार नहीँ मानो तुम।
हार नहीँ मानो तुम।।

____सौरभ कुमार दुबे

 

सौरभ कुमार दुबे

सह सम्पादक- जय विजय!!! मैं, स्वयं का परिचय कैसे दूँ? संसार में स्वयं को जान लेना ही जीवन की सबसे बड़ी क्रांति है, किन्तु भौतिक जगत में मुझे सौरभ कुमार दुबे के नाम से जाना जाता है, कवितायें लिखता हूँ, बचपन की खट्टी मीठी यादों के साथ शब्दों का सफ़र शुरू हुआ जो अबतक निरंतर जारी है, भावना के आँचल में संवेदना की ठंडी हवाओं के बीच शब्दों के पंखों को समेटे से कविता के घोसले में रहना मेरे लिए स्वार्गिक आनंद है, जय विजय पत्रिका वह घरौंदा है जिसने मुझ जैसे चूजे को एक आयाम दिया, लोगों से जुड़ने का, जीवन को और गहराई से समझने का, न केवल साहित्य बल्कि जीवन के हर पहलु पर अपार कोष है जय विजय पत्रिका! मैं एल एल बी का छात्र हूँ, वक्ता हूँ, वाद विवाद प्रतियोगिताओं में स्वयम को परख चुका हूँ, राजनीति विज्ञान की भी पढाई कर रहा हूँ, इसके अतिरिक्त योग पर शोध कर एक "सरल योग दिनचर्या" ई बुक का विमोचन करवा चुका हूँ, साथ ही साथ मेरा ई बुक कविता संग्रह "कांपते अक्षर" भी वर्ष २०१३ में आ चुका है! इसके अतिरिक्त एक शून्य हूँ, शून्य के ही ध्यान में लगा हुआ, रमा हुआ और जीवन के अनुभवों को शब्दों में समेटने का साहस करता मैं... सौरभ कुमार!

2 thoughts on “हार नहीं मानो तुम….

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    बेजोड़ लेखन …. बधाई उम्दा सृजन के लिए

  • विजय कुमार सिंघल

    प्रेरक कविता !

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