गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बात दिल की कह दी जब अशआर में
ख़त किताबत क्यूँ करूँ बेकार में

मरने वाले तो बहुत मिल जाएंगे
सिर्फ़ हमने जी के देखा प्यार में

कैसे मिटती बदगुमानी बोलिये
कोई दरवाज़ा न था दीवार में

आज तक हम क़ैद हैं इस खौफ से
दाग़ लग जाए न इस किरदार में

दोस्ती, रिश्ते, ग़ज़ल सब भूल कर
आज कल उलझी हूँ मैं घर बार में

श्रद्धा जैन

उपनाम -श्रद्धा जन्म स्थान -विदिशा, मध्य प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ विविध कविता कोश सम्मान 2011 सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित कविता कोश टीम मे सचिव के रूप में शामिल आपका मूल नाम शिल्पा जैन है। जीवनी श्रद्धा जैन / परिचय

One thought on “ग़ज़ल

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

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