कहानी

घर का मोह

चाचा (पड़ोसी ,हम 10 साल से साथ थे) की मिट्टी ( 29-07-2013)मिट्टी में मिल गई ….
चाची अकेली रह गई ….
चाची बहुत ,बहुत , बहुत जल्दी-जल्दी और अस्पष्ट बोलती हैं …. और … एक ही बात को बहुत बार दोहराती हैं …. इस लिए दूसरे उन्हें झेलना पसंद नहीं करते हैं …. ये बात चाची कहती भी और समझती भी हैं …. लेकिन मेरे पास उनके लिए हमेशा समय रहा …. उनकी बेटी और मैं एक ही उम्र की होने के कारण और प्यार-सम्मान के कारण भी चाची और मेरे बीच ,माँ-बेटी का संबंध बना रहा ….
चाची जब 10 साल की और चाचा 20 साल के थे तो उनकी शादी हुई थी …. चाची की शादी एक बड़े परिवार में हुई थी …. चाचा 12-13 भाई-बहन थे …. चाचा सबसे बड़े थे …. देवर-ननद के साथ ही चाची भी बड़ी हुई …. चाची को एक बेटी और एक बेटा हुआ …. चाचा की जब नौकरी लगी तो चाची साथ रहने लगी …. चाचा की आमदनी साधारण थी …. किसी तरह से जोड़-गाँठ कर अपने बच्चों की परवरिश और बेटी की शादी की …. बेटा ONGC में एक अच्छे पद पर नौकरी करने लगा लेकिन शादी के लिए तैयार नहीं हो रहा था …. क्यूँ कि ना जाने उसकी पत्नी कैसी आये …. उसके माता-पिता का ख़्याल ना रखे तो घर में कलह होगा …. बेटा अपने माता-पिता से बहुत प्यार करता है …. परिवार-समाज के समझाने और दबाब बनाने पर बेटा की शादी हुई …. परंतु बहू और सास-ससुर में ताल-मेल नहीं ही बैठ सका …. बेटा अपनी पत्नी को बहुत समझाने का प्रयास करता …. बहू समझौता करने की कोशिश भी करती …. लेकिन सोच की समस्या थी …. ससुर पुराने विचारों के और बहू नए विचारो की ….
जिंदगी गुजरती रही …. बेटा के साथ जब माँ-बाप रहने के लिए तैयार नहीं हुये तो पटना में ही एक फ्लैट खरीद कर , सब सुख-सुविधा का इंतजाम कर , एक नौकर रख दिया ….

चाची को उस घर से बहुत मोह हो गया ….. प्रतिदिन घर के दरो-दिवार , फर्श , खिड़की-दरवाजे को रगड- रगड कर साफ करवाती ….. अपने और चाचा के पसंद के व्यंजन बनवाती ….. सैकड़ों गमले लगा लिए जिसमें गेंदा-गुलाब उनके प्यार पा कर सबको सम्मोहित करते ….

लेकिन…. बुढ़ापा तो सुख-सुविधा से नहीं कटती …. वो किसी अपने के देखभाल से कटती है …. करीब 3-4 साल पहले, पटना के घर में ताला लगा कर माँ-बाप को अपने साथ(बरौदा, जहां वो नौकरी करता है)ले गया …. चाची जाते समय मेरे गले लग कर बहुत रोई कि वे अब वापस नहीं आ सकेगी और बहू के साथ वहाँ कैसे रहेंगे ….
लेकिन एक साल के बाद ही वापस आ गए चाची-चाचा …. बेटा के घर में चाची का मन नहीं लगा …. चाचा को अच्छा लगता था ,पोता का साथ था ….
चाची का कहना था कि बहू ध्यान नहीं रखती थी …. वे लोग को रखना नहीं चाहती थी …. यहाँ पटना आने के बाद चाचा-चाची दोनों बीमार रहने लगे …. चाची को ब्रेन-हेमरेज हो गया …. चाचा को बुढ़ापा परेशान करने लगा …. बेटा बार-बार आता ले जाने की जिद करता …. लेकिन चाची जिद पर अड़ी रही …. नहीं जाना था नहीं गई …. इस बीच बहू भी आई …. मेरी बहू से भी बात हुई …. नासमझी का मामला था …. जरूरत तो चाची को था बेटा -बहू का साथ …. एक साल पहले चाचा के बीमारी के कारण चाचा – चाची बेटी के घर (पटना में ही) रहने लगे …. हर महीने होता कि कुछ तबीयत संभल जाता है तो अपने घर लौट आयेंगे …. लेकिन चाचा नहीं आ सके …. आज चाची बेटे बहू के साथ घर लौटीं हैं …. चाचा का श्राद्ध-कर्म बेटे के घर से ही होना चाहिए ….
श्राद्ध-कर्म बेटे के हाथो ही हो सकता है ना ….
चाचा को बेटी के घर अच्छा नहीं लगता था …. वे अपने पोता के साथ रहना चाहते थे …. अब चाची उसी बहू के साथ रह रहीं हैं  ….

क्या मिला चाची को …. ??

 

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

3 thoughts on “घर का मोह

  • विजय कुमार सिंघल

    मोह सभी समस्याओं की जड़ है. यह मैं नहीं कह रहा, तुलसीदास जी कह गए हैं-
    ‘मोह सकल व्याधिन कर मूला. तेहि ते पुनि उपजहिं बहु शूला.’
    आपकी कहानी इसको सत्य सिद्ध करती है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    घर घर की कहानी.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      जी

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