गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : जब हमारी बेबसी पर मुस्करायीं हसरतें

जब हमारी बेबसी पर मुस्करायीं हसरतें
हमने ख़ुद अपने ही हाथों से जलाईं हसरतें

ये कहीं खुद्दार के क़दमों तले रौंदी गईं
और कहीं खुद्दरियों को बेच आईं हसरतें

सबकी आँखों में तलब के जुगनू लहराने लगे
इस तरह से क्या किसी ने भी बताईं हसरतें

तीरगी, खामोशियाँ, बैचेनियाँ, बेताबियाँ
मेरी तन्हाई में अक्सर जगमगायीं हसरतें

मेरी हसरत क्या है मेरे आंसुओं ने कह दिया
आपने तो शोख रंगों से बनाईं हसरतें

सिर्फ तस्वीरें हैं, यादें हैं, हमारे ख़्वाब हैं
घर की दीवारों पे हमने भी सजाईं हसरतें

इस खता पे आज तक ‘श्रद्धा’ है शर्मिंदा बहुत
एक पत्थरदिल के क़दमों में बिछायीं हसरतें

श्रद्धा जैन

उपनाम -श्रद्धा जन्म स्थान -विदिशा, मध्य प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ विविध कविता कोश सम्मान 2011 सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित कविता कोश टीम मे सचिव के रूप में शामिल आपका मूल नाम शिल्पा जैन है। जीवनी श्रद्धा जैन / परिचय

3 thoughts on “ग़ज़ल : जब हमारी बेबसी पर मुस्करायीं हसरतें

  • Radha Shrotriya

    तीरगी, खामोशियाँ, बैचेनियाँ, बेताबियाँ
    मेरी तन्हाई में अक्सर जगमगायीं हसरतें

    मेरी हसरत क्या है मेरे आंसुओं ने कह दिया
    आपने तो शोख रंगों से बनाईं हसरतें……Waah ! bahut khoob

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल बहुत ही अच्छी लगी.

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

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