गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : अजनबी खुद को लगे हम

अजनबी खुद को लगे हम
इस कदर तन्हा हुए हम

उम्र भर इस सोच में थे
क्या कभी सोचे गए हम

खूबसूरत ज़िंदगी थी
तुम से मिलकर जब बने हम

चाँद दरिया में खड़ा था
आसमाँ तकते रहे हम

सुबह को आँखों में रख कर
रात भर पल – पल जले हम

खो गए हम भीड़ में जब
फिर बहुत ढूँढे गए हम

इस ज़मीं से आसमां तक
था जुनूँ उलझे रहे हम

जीस्त के रस्ते बहुत थे
हर तरफ रोके गए हम

लफ्ज़ जब उरियाँ हुए तो
फिर बहुत रुसवा हुए हम

जागने का ख़्वाब ले कर
देर तक सोते रहे हम

तेरे सच को पढ़ लिया था
बस इसी खातिर मिटे हम

श्रद्धा जैन

उपनाम -श्रद्धा जन्म स्थान -विदिशा, मध्य प्रदेश, भारत कुछ प्रमुख कृतियाँ विविध कविता कोश सम्मान 2011 सहित अनेक प्रतिष्ठित सम्मान और पुरस्कार से सम्मानित कविता कोश टीम मे सचिव के रूप में शामिल आपका मूल नाम शिल्पा जैन है। जीवनी श्रद्धा जैन / परिचय

2 thoughts on “ग़ज़ल : अजनबी खुद को लगे हम

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    ग़ज़ल पड़ कर मज़ा आ गिया , आप बहुत अच्छा लिखती हैं .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी ग़ज़ल !

Comments are closed.