गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल : दिल के जज़्बात जले क्यों हैं

दिल के जज़्बात फिर जले क्यों हैं।
हम सही होके भी छले क्यों हैं।

वो तो कहते थे, प्यार मुझसे हुआ,
अजनबी बनके वो मिले क्यों हैं।

मैं हूँ पत्थर सड़क का, चाँद हो तुम,
ख्वाब मिलने के फिर पले क्यों हैं।

आदमी तुम हो, आदमी वो भी,
तीर, तलवार ये चले क्यों हैं।

जिनसे जज्बात हैं उन्हें सौंपो,
होठ चुप होके, अब सिले क्यों हैं।

पर्चियां तक तो हैं, किताबों में,
मेरे ख़त पांव के, तले क्यों हैं।

“देव ” रिश्तों का क़त्ल करके भी,
सबकी नज़रों में वो भले क्यों हैं। ”

…….चेतन रामकिशन “देव”

3 thoughts on “ग़ज़ल : दिल के जज़्बात जले क्यों हैं

  • Radha Shrotriya

    .”आदमी तुम हो, आदमी वो भी,
    तीर, तलवार ये चले क्यों हैं।

    जिनसे जज्बात हैं उन्हें सौंपो,
    होठ चुप होके, अब सिले क्यों हैं।….”

    bahut he he khoobsurti s aapne mn k bhav vykt kiye h Chetan ji..bahut khoob ..vese bhi aapki sari rachnaye mujhe bahut pasand h …ek kashish h aapke lekhan m.. or badi sadgi s such ko prastut karte h..

  • नीरज पाण्डेय

    आपकी गजल के हर शब्द में दम है।
    “सबकी नजरों में वो भले क्यो है”

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी ग़ज़ल चेतन जी.

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