कविता

कविता : कभी कोई शब्द

कभी कोई शब्द ,
मिलते हैं यूँ अचानक
कभी कोई राह ,
दिखती है यूँ अचानक
फिर कोई मौन पुकारता है मुझे ……
एक फूल खिलता है,
मन के वीराने में और
गूंज उठता है एक गीत जब
फिर कोई मौन पुकारता है मुझे …..
निःशब्द शांत ह्रदय में ,
दूर से एक आवाज आती है और
उगता है रगों में जिंदगी की
एक स्नेहिल आस और तब ,
फिर कोई मौन पुकारता है मुझे ……!

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

One thought on “कविता : कभी कोई शब्द

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत खूब !

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