सामाजिक

लेख : बाल -मजदूर

बालश्रम या बाल मजदूरी एक सामाजिक बुराई है , जो आज की भयंकर त्रासदी बनते जा रही है | इससे बच्चों का ही नहीं बल्कि देश का विकास भी प्रभावित होता है | बालमजदूरी कई बार परिवार की मजबूरी और जरुरत बन जाती है | कई बार ऐसा भी होता है कि गरीबी और आर्थिक तंगी की वजह से कई-कई घरों में एक वक्त का भोजन  भी मुश्किल हो जाता है वैसे हालत में माँ-बाप बच्चों से मजदूरी करवाने पर विवश हो जाते हैं |

हम यहाँ सिर्फ गरीबी को ही मुख्य मुद्दा नहीं मान सकते , बहुत हद तक हमारा परिवेश तथा अशिक्षा भी बालश्रम का अहम् हिस्सा है | जिस घर में माँ-बाप पढ़े – लिखे नहीं होते वो अपने बच्चों को भी शिक्षा से वंचित रखते हैं,उनकी नजर में सिर्फ दो वक्त का भोजन ही महत्व रखता है ,फिर उसके लिए काम चाहे कोई भी करना पड़े उनपे कोई असर नहीं होता है | बालश्रम अगर देश से ख़त्म करने की मुहिम चलानी है तो सरकार,समाज,परिवेश तथा माँ-बाप की भूमिका बहुत मायने रखती है ,बिना इसके ऐसा कोई भी परिवर्तन संभव नहीं है |

बालश्रम में बंधुआ मजदूरी सबसे ख़राब व् खस्ता हाल स्थिति में है , जहाँ बच्चों को जबरन काम पर लगाया जाता है और बदले में उनके स्वास्थ्य तथा रहन -सहन का भी कोई समुचित इंतजाम नहीं किया जाता है | नतीजन आज सैंकड़ों बच्चे बद-इन्तजामी की वजह से कुपोषित हो रहे हैं या तो उनकी मौत हो जा रही है | अभी हाल ही में बाल-मजदूरी और बंधुआ मजदूरी पर काम कर रहे ”कैलाश सत्यार्थी” को नोबेल पुरस्कार मिला है ,पर सच में अगर आप इस समस्या से देश को मुक्त करना चाहते है तो ऐसे कई कैलाश सत्यार्थी को आगे आना होगा तभी जाकर यह समस्या कुछ हद तक समाप्त होगी | हालाँकि ‘बचपन बचाओ ‘ की मुहिम अब तेजी पर दिख रही है ,विश्व स्तर पर इसकी पहचान हुई है पर अभी भी बहुत काम बाकी है |

सबसे ज्यादा बालश्रम उद्योग -धंधो में करवाया जाता है | अगर कोई बच्चा गरीब घर में जन्म लिया है तो यह उसका अपराध नहीं है पर हम और हमारा समाज उसे उसी नजर से देखता है और उसे उसी तरह के काम से आंकता है ,जो बिलकुल गलत है | आज के यही बच्चे कल के भविष्य हैं | हालाँकि यह लड़ाई काफी मुश्किल भरा है पर अगर देश का हर नागरिक इस विषय पर गंभीर होकर सोचेगा तो इतना मुश्किल भी नहीं ………!

संगीता सिंह ‘भावना’

संगीता सिंह 'भावना'

संगीता सिंह 'भावना' सह-संपादक 'करुणावती साहित्य धरा' पत्रिका अन्य समाचार पत्र- पत्रिकाओं में कविता,लेख कहानी आदि प्रकाशित

2 thoughts on “लेख : बाल -मजदूर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    यह समस्या हल होना तभी संभव होगा जब आम लोगों की सोच बदलेगी . मेरी सोच और सुझाव से कुछ फर्क नहीं पड़ने वाला लेकिन एक बात कहना चाहूँगा कि अगर हर देश वासी धर्म कर्म और कर्म कांड की जगह किसी एक बच्चे को गोद ले ले और उस को पढाए तो कोई कारण नहीं गरीबी ख़तम ना हो और बच्चे बाल मजदूरी के लिए बेवश हों . मैं यह नहीं कहता कि कोई अपने धर्म अस्थान पर ना जाए लेकिन वहां फजूल पैसा लाने की वजाए किसी गरीब की मदद के लिए लगाया जाए तो भगवान् ज़िआदा खुश होगा , वर्ना आप पुजारिओं को ही खुश कर पाएंगे . हम ने भी ऐक रिश्तेदार को गोद लिया हुआ है , वोह एक विधवा औरत है , कोई बच्चा नहीं है , सब रिश्तेदार मुंह मोड़ गए हैं लेकिन हम उस को दुःख उठाने नहीं देंगे . दो वर्ष हुए उनके किडनी स्टोन थे , और तकलीफ में थी , हम ने उस का ऑपरेशन करवा दिया . अब वोह ठीक है , हमें ख़ुशी है . हर हफ्ते मेरी धर्मपत्नी उस को गाँव में टेलीफून करती है और किसी चीज़ की जरुरत हो तो हम पूरी कर देते हैं . जब भी कोई यहाँ से भारत जाता है तो हम कपडे जूते और बहुत सी चीज़ें भेज देते हैं . वोह दुआएं देती है मगर हम तो अपना फ़र्ज़ ही पूरा करते हैं . यह बात मैंने इस लिए नहीं लिखी कि मुझे अहंकार है , सिर्फ इस लिए लिखी कि अगर कोई धर्म कर्म पर खर्च करना चाहता है तो यही धर्म कर्म है बाकी सभ पाखंड है .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. लेकिन जो बच्चे अपने ही घर या दुकान पर काम करते हैं या सीखते हैं, उनको बाल मजदूर नहीं माना जा सकता. बहुत से अनाथ या अति गरीब माँ-बाप के बच्चे भी काम करने के लिए बाध्य होते हैं, वरना खायेंगे क्या? इन सब बातों पर भी विचार करना चाहिए.

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