कविता

आज फिर से बचपन जीना चाहती हू..

आज फिर वो बचपन जीना चाहती हू
मां के आंचल मे आज फिर से
छुपना चाहती हू
पापा को अपनी फरमाईशे बता कर
दादाजी से सपोर्ट चाहती हू
आज फिर वो बचपन जीना चाहती हू
दीदी का श्रृंगार चुराना
भैया को डाट पिटवाना
छुटकी की चोटी खिंचकर
फिर से भागना चाहती हू
आज फिर वो बचपन जीना चाहती हू
सखियों संग खिलोने खेलना
वो टेडी मेडी रोटी बेलना
और अपनी ही बात रखवाना चाहती हू
आज फिर से बचपन जीना चाहती हू
वो टीचर जी की नकल करना
अपनी गल्तिया दोस्तों पर मढना
फिर मन ही मन मुस्कराते चलना चाहती हू
आज फिर से बचपन जीना चाहती हू
वो नाक से सदा बहता झरना
नकली आंसुओं को भरना
गल्ती होने पर भी लङना चाहती हू
आज फिर से बचपन जीना चाहती हू
अकङ दिखाकर सबको डराना
और हर एक कमजोर को बचाना
फिर से करना चाहती हू
आज फिर से बचपन जीना चाहती हू
सबकी आंखो का बनके तारा
ऐसे बिताया बचपन सारा
अपने बच्चों मे ये कुछ अंश देख मुस्कराती हू
आज फिर से बचपन जीना चाहती हू

*एकता सारदा

नाम - एकता सारदा पता - सूरत (गुजरात) सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने ektasarda3333@gmail.com

4 thoughts on “आज फिर से बचपन जीना चाहती हू..

  • जवाहर लाल सिंह

    बहुत सुन्दर एकता जी,
    दीदी का श्रृंगार चुरानाभैया को डाट पिटवाना
    छुटकी की चोटी खिंचकर
    फिर से भागना चाहती हू
    आज फिर वो बचपन जीना चाहती हू

  • एकता सारदा

    हार्दिक आभार सर

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. बचपन की यादें बहुत सुहानी होती हैं.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता अच्छी लगी , बचपन की मीठी चाहत , वोह कागद की कश्ती वोह बारिश का पानी ……………

Comments are closed.