लघुकथा

यहाँ चाह वहां राह

सतीश अपने ड्राइंग रूम में बैठा सिगरट पी रहा था . संतोष से उस का तलाक हुए आज दस वर्ष हो गए थे . वोह बहुत उदास था औए सोच रहा था यह सब कुछ कियों हो गिया , कितने खुश थे वोह दोनों . सोच सोच कर उस का सर दुखने लगा था . उस ने रेडिओ ऑन किया . रेडिओ पे एक कहानी शुरू हुई , वोह धियान से सुनने लगा . जब कहानी ख़तम हुई तो उस की आँखों में एक चमक सी आ गई . यह कहानी उस की जिंदगी से कितनी मिलती जुलती थी .

उस ने सिगरट को ऐश ट्रे में मसल दिया , पेपर पैन लिया और संतोष को ख़त लिखना शुरू कर दिया .’ हैलो संतोष ! मेरी इल्तजा है कि पढने से पहले ही मेरे ख़त को फाड़ ना देना , यह ख़त तो सिर्फ तुम से अपने गुनाहों की मुआफी मांगने के वास्ते ही है . जिंदगी का क्या भरोसा ! किया मालूम कल क्या हो जाए . अगर मैं मुआफी नहीं मांगता हूँ तो मुझे मर कर भी शान्ति नहीं मिलेगी . हमारी अच्छी भली जिंदगी थी . हमारे दो बेटे भी थे मगर घर के बुरे वातावरण ने सभ कुछ तहस नहस कर दिया . मेरे माँ बाप ने तुझे कभी भी बहु जैसा नहीं समझा और मेरे भाई बहनों को तो हमें खुश देख कर शाएद जलन ही होती थी . और वोह भाई बहन अब मेरे साथ ऐसा विवहार करते हैं जैसे मैं एक अजनवी हूँ . सब से ज़िआदा बुरा मैंने किया जो उसी वहाओ में बह गिया और रोज़ रोज़ लड़ाई झगडे से हमारा तलाक हो गिया . तुम बच्चे लेकर इलग्ग मकान में रहने लगी . तुम कितनी अच्छी हो कि तुम ने कभी भी मुझ को बेटों से मिलने के लिए नहीं रोका . अब तो उन्होंने यूनिवर्सटी की पड़ाई भी ख़तम कर ली है . तुम ने उनको बहुत अछे संस्कार दिए हैं , मैं ही अभागा हूँ जिस ने अपना घर बर्बाद कर लिया . मेरी दिली तमन्ना है कि तुम हमेशा खुश रहो और अगर हो सके तो मेरे गुनाहों को मुआफ कर दो .’

सतीश ने ख़त पोस्ट कर दिया लेकिन उस को कोई आशा नहीं थी कि उस को संतोष का जवाब आएगा . लेकिन उस को हैरानी और ख़ुशी हुई जब कुछ दिनों के बाद ख़त का जवाब आ गिया . वोह ख़त खोल कर पड़ने लगा . लिखा था , ‘सतीश ! अब किसी को दोष देने का किया फाएदा जब जवानी के अच्छे लम्हें ही गुज़र गए , क्योंकि इस में दोषी मैं भी हूँ जिस ने जल्द बाज़ी में तलाक के पेपर फ़ाइल कर दिए . अब मैं भी सोचने लगी हूँ कि कुछ कसूर आप का था और कुछ कसूर मेरा था . लेकिन एक बात मैं कहना चाहूंगी कि अगर तुमारी इच्छा पुराने दिनों को वापिस लाने की है तो बेटों को बता देना, मैं तुमारा इंतज़ार करुँगी .’

जब बेटों को डैडी मम्मी के आपस में नज़दीक आने का पता चला तो उनकी ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा और उन्होंने नए वर्ष की रात को एक होटल के हाल में मम्मी डैडी के लिए REUNION PARTY बुक करवा दी . होटल का हाल कमरा मेहमानों से भरा हुआ था . सभी खाने पीने में व्यस्त थे . एक दीवार पर बड़ी टीवी स्क्रीन पर लन्दन थेमज़ दरिया के किनारे न्यू ईअर सैलीब्रेशन दिखाई जा रही थी . तरह तरह के रंगों की लाइटों से थेमज़ दरिया जग मग जग मग कर रहा था . जब रात के बारह वजने को आये तो बिग बैन का घंटा एक एक करके बजने लगा . जब आखरी घंटा बजा तो हाल के सभी मेहमान हाथों में ग्लास लिए उठ खड़े हुए और बोलने लगे, सतीश ! संतोष ! हैपी निऊ ईअर ! हैपी रीयूनियन ! हिप हिप हुर्रे , हिप हिप हुर्रे . ग्लास से ग्लास टकराने लगे और सभी डांस करने लगे .

दोनों बेटे डैडी मम्मी पर फूलों की बारिश कर रहे थे .

4 thoughts on “यहाँ चाह वहां राह

  • विभा रानी श्रीवास्तव

    सकारात्मक संदेश के साथ अंत हुई कहानी मुझे बहुत पसंद आती है ….. समय सब ठीक करता है बस थोड़े से धैर्य और सहने की क्षमता बढानी होती है ….

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      विभा बिहान , बहुत बहुत धन्यवाद , दरअसल यह कहानी एक सच्ची घटना पर आधारत है .

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघुकथा, भाई साहब ! यदि पति-पत्नी में समझदारी हो, तो पहले तो गलतफहमियां पैदा ही नहीं होतीं और यदि कुछ गलतफहमियों के कारण अलगाव हो गया हो, तो उनकी आपसी समझदारी से बच्चों की खुशियाँ लौटते देर नहीं लगती.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      धन्यवाद विजय भाई .

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