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बाल दिवस और चाचा नेहरू

(उनकी १२५ वीं जन्मोत्सव पर विशेष)
अपने देशवासियों से मुझे इतना प्यार और आदर मिला कि मैं इसका अंश मात्र भी लौटा नहीं सकता और वास्तव में इस अनमोल प्रेम के बदले कुछ लौटाया जा भी नहीं सकता… इससे मैं भाव-विभोर हो गया हूँ| – पंडित जवाहर लाल नेहरू की आखिरी वसीयत से
पंडित जवाहर लाल नेहरू की यादें जमशेदपुर से भी गहरी जुड़ी हैं। चाचा नेहरू ने जुबली पार्क में बरगद का एक पौधा लगाया था। 56 वर्ष की लंबी अवधि में यह छोटा सा पौधा विशाल वृक्ष का रूप ले चुका है। पार्क में आने वाले हजारों लोगों को हर दिन यह वृक्ष देश के पहले प्रधानमंत्री की याद दिलाता है। टाटा स्टील के 50 साल पूरे होने पर देश के पहले प्रधानमंत्री के रूप में शहर आए पंडित नेहरू ने शहरवासियों को जुबली पार्क का तोहफा दिया था। एक मार्च 1958 को चाचा नेहरू ने टाटा स्टील के संस्थापक जे एन टाटा की मूर्ति का अनावरण किया था| मूर्ति के सामने गेट के पास लगा शिलापट आज भी अपनी चमक कायम रखे हुए है। सुनहरे अक्षरों में लिखा पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम दूर से ही दिखाई देता है। हर साल तीन मार्च को टाटा स्टील की ओर से मनाए जाने वाले संस्थापक दिवस समारोह की औपचारिक शुरुआत जुबली पार्क में उसी स्थान से होती है। जहां पहली बार पंडित जवाहर लाल नेहरू के कदम पड़े थे। टाटा स्टील के सेंटर फार एक्सीलेंस में देश के पूर्व प्रधानमंत्री की यादों की पूरी शिद्दत से सजाकर रखा गया है। तथ्यों के अनुसार पंडित नेहरू सन 1925 में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के साथ पहली बार जमशेदपुर आए। इस शहर की आबोहवा ने उन्हें इतना आकर्षित किया कि वर्ष 1938 में वह फिर जमशेदपुर आए। अपनी दूसरी यात्रा में उन्होंने टाटा स्टील के कर्मचारियों से मुलाकात की। प्रधानमंत्री के रूप में नेहरू की तीसरी और अंतिम यात्र 1958 में हुई। वर्षो बाद भी कंपनी ने इन ऐतिहासिक तथ्यों पर समय की धूल नहीं जमने दी है।
पंडित जवाहर लाल नेहरु के ह्रदय में बच्चों के लिए असीम प्यार था| स्वतंत्रता के बाद उन्होंने बच्चों की शिक्षा, स्वास्थ्य और उनके कल्याण के लिए बहुत सारी योजनाओं का शुभारम्भ किया| वे बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय थे, तभी वे ‘चाचा नेहरु’ कहलाये| उन्ही के प्रयास से हर क्षेत्रों में अनेक प्राइमरी, मिडिल और उच्च स्तर के शिक्षण संस्थान खुलवाए गए| आल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंस, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट की स्थापना उन्हीं की देन है| उन्होंने बच्चों के स्कूलों में मुफ्त में पौष्टिक आहार और दूध देने की योजना की भी शुरुआत की| इन्ही सब कारणों से उनके जन्म दिन को ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाया जाता है| यह बात अलग है कि आज भी हमारे देश के काफी बच्चे अभी भी सामान्य शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाओं से वंचित हैं| खेलने और पढ़ने की उम्र में वे अक्सर कूड़ों से पुनरुपयोगी वस्तुएं ढूँढते दिखलाई पड़ते हैं| ट्रेनों में हम अभी भी मूंगफली, केले, संतरे आदि के छिलके बैठने की जगह के पास ही गिराने में संकोच नहीं करते और छोटी उम्र के ही गरीब बच्चे उसे साफ़ करते दिख जाते हैं| उन्हें भी हम एक दो रुपये देने में खुदरा न होने का बहाना बनाने से बाज नहीं आते|
अभी भी सरकारी विद्यालयों में मध्याह्न भोजन में अनियमितता और भ्रष्टाचार के शिकार ये ही बच्चे होते हैं| दूषित, जहरीले खाने खाकर अक्सर बीमार होने और अकाल मौत के शिकार ये नौनिहाल होते ही रहते हैं| इस प्रकार हम जितना भी ‘बाल दिवस’ और नेहरु जी की जन्म तिथि पर घोषणाएं या आयोजन कर लें, सही मायने में बाल कल्याण जब तक नहीं होगा, चाचा नेहरु आस-पास ही प्रश्न भरी निगाहों से मुस्कुराते नजर आएंगे|
हम सभी जानते हैं कि नेहरु जी का लालन पालन बड़े शाही अंदाज में हुआ और वे काफी शौकीन भी थे, पर महात्मा गाँधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूद पड़े| अनेकों बार जेल गए, जेल में भी उनका अद्धययन और लेखन जारी रहा| जेल से उन्होंने अपनी पुत्री इंदिरा गाँधी को अनेकों पत्र लिखे| इन पत्रों को ‘एक पिता का अपनी पुत्री को पत्र’ के रूप में कक्षाओं में पढ़ाया भी जाता है. इन्ही पत्रों से प्रेरणा लेकर श्रीमती इंदिरा गाँधी राजनीति में आयीं और एक दिन वह भी भारत की लोकप्रिय प्रधान मंत्री बनीं.

आधुनिक भारत के निर्माता कहे गए देश के पहले प्रधानमंत्री पं. जवाहर लाल नेहरू को आज सुनियोजित ढंग से अप्रासंगिक साबित करके हाशिए पर डालने की कोशिश की जा रही है। दूसरी ओर मरणासन्न हो चुकी कांग्रेस एक बार फिर नेहरू का नाम लेकर उठ खड़ी होने की जद्दोजहद में जुटी है। जाहिर है कि नेहरू ने कई गलतियां कीं। इसके बावजूद वे विश्व स्तरीय नेता थे इसमें कोई शक नहीं। कांग्रेस में आजादी के बाद जब नए प्रधानमंत्री के चुनाव के लिए मतदान कराया गया तो नेहरू सरदार पटेल और आचार्य कृपलानी के बाद तीसरे नंबर पर थे, लेकिन महात्मा गांधी ने वीटो करके नेहरू को प्रधानमंत्री निर्वाचित कराया। नेहरू गांधी जी के प्रिय जरूर थे, लेकिन जहां तक नीतियों के स्तर की बात है, नेहरू का रास्ता गांधीवाद से काफी जुदा था। फिर भी गांधी जी ने नेहरू को देश की बागडोर सौंपी। यह विपर्यास आजादी के बाद से लेकर अभी तक की देश की नियति को देखते हुए गांधी जी की सूझबूझ को साबित करता है। आज निष्पक्ष दृष्टिकोण से आजाद भारत के इतिहास का मूल्यांकन करने वाला हर शख्स इस नतीजे पर पहुंचता है कि अगर नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री न होते तो इस देश में भी भारतीय उपमहाद्वीप के अन्य देशों की तरह लोकतंत्र की अकाल मौत हो जाती और शायद पाकिस्तान की तरह यह देश भी और ज्यादा बंट जाता। नेहरू भारत के सबसे बड़े बेरिस्टरों में से एक मोतीलाल नेहरू के इकलौते पुत्र थे, जिसकी वजह से उनकी शिक्षा दीक्षा बहुत ही शाही अंदाज में हुई। आरंभिक शिक्षा उन्हें इलाहाबाद में ही उनके घर में दिलाई गई। इसके बाद वे इंग्लैंड भेज दिए गए जहां उन्होंने प्रसिद्ध हेरी स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद ग्रेजुएशन टे्रनिटी से किया। ‘ला ग्रेजुएट’ वे कैंब्रिज यूनिवर्सिटी से बने। ऐसे में उनका मिजाज बेहद सुकुमार था। अंग्रेजियत का उन पर जबरदस्त प्रभाव था। बावजूद इसके वे स्वतंत्रता संग्राम से जुड़े, तो उन्होंने अपनी जिंदगी का सारा तौर तरीका बदल दिया। उन्होंने अंग्रेजों के विरोध में हुए आंदोलनों में सक्रिय रूप से भाग लिया। पराकाष्ठा तो तब हुई जब 1929 में उनकी अध्यक्षता में कांग्रेस का सम्मेलन लाहौर में हुआ जिसमें उन्होंने अंग्रेजों से पूर्ण मुक्ति का प्रस्ताव पारित कर स्वतंत्र भारत का पहला ध्वज फहराया।
अंग्रेजियत के माहौल में पले बढ़े नेहरू का यह कारनामा उनके क्रांतिकारी किरदार को उजागर करता है। दूसरी ओर जब वे गांधी जी के संपर्क में आए तो फेशनेबिल नेहरू से खादी का कुर्ता पायजामा और सफेद टोपी लगाने वाले नेहरू बन गए। इसमें उन्होंने कुछ भी अटपटापन महसूस नहीं किया। आजादी की लड़ाई के लिए बार-बार जेल जाना उन्होंने अपना शगल बना लिया। इस व्यक्तित्व के आधार पर ही नेहरू करिश्माई नेता का विंब अपने लिए संजो सके जिससे राजशाही व अन्य चीजों को लेकर देश की जनता में जमी आस्था की गहरी पैठ को हिलाकर वे उसे लोकतांत्रिक चेतना में पिरोने का बड़ा काम कर सके।
ये ध्यान रखना होगा कि १४ नवम्बर को भले ही बाल दिवस के रूप में बच्चों को समर्पित हो या फिर विशुद्ध नेहरू जी के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता रहा हो, मनाया जा रहा हो, किन्तु बच्चों के प्रति सामाजिक जिम्मेवारी कदापि कम नहीं हो सकती| जिस दिन हम बच्चों के प्रति सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ेंगे उसी दिन से सभी दिन बाल दिवस के रूप में स्वतः ही मनाये जाने लगेंगे|
सोनिया जी नेहरू जी की जन्म शताब्दी पर देश के प्रधानमंत्री को न्योता भेजने में शर्मा रहीं हैं… उनको शायद यह ज्ञात नहीं कि मोदी आज केवल बी जे पी के नेता ही नहीं हैं, मोदी आज पूरे देश के मुखिया हैं, प्रधानमंत्री हैं और कांग्रेस पार्टी यह भी देख रही है| मोदी जी को अपने देश क्या विदेशों में कितना सम्मान मिल रहा है आज श्री नरेंद्र भाई मोदी अगर देखा जाय तो श्री नेहरु जैसे ही अंतर-राष्ट्रिय नेता के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो रहें हैं| अगर कांग्रेस पार्टी ऐसी ही गलतियां करती रही तो वह दिन दूर नहीं जब मोदी जी का सपना पूरा होकर रहेगा “कांग्रेस मुक्त भारत का ” देश कांग्रेस मुक्त बन जायेगा| … कांग्रेसियों जरा सोंचो !
लेकिन नेहरू पाकिस्तान और चीन के साथ भारत के संबंधों में सुधार नहीं कर पाए। पाकिस्तान के साथ एक समझौते तक पहुँचने में कश्मीर मुद्दा और चीन के साथ मित्रता में सीमा विवाद रास्ते के पत्थर साबित हुए। नेहरू ने चीन की तरफ मित्रता का हाथ भी बढाया, लेकिन 1962 में चीन ने धोखे से आक्रमण कर दिया। नेहरू के लिए यह एक बड़ा झटका था और शायद उनकी मौत भी इसी कारण हुई। 27 मई 1964 को जवाहरलाल नेहरू को दिल का दौरा पडा जिसमें उनकी मृत्यु हो गई।
ऐसे महान और लोकप्रिय नेता को हार्दिक श्रद्धांजलि! उम्मीद है, मौजूदा सरकार भी बच्चों के प्रति वैसी ही विचारधारा का न केवल पालन करती रहेगी वरन दो कदम आगे बढ़कर काम करेगी!
– जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर

 

2 thoughts on “बाल दिवस और चाचा नेहरू

  • विजय कुमार सिंघल

    जवाहर लाल जी, आपका नाम नेहरु से मिलता है, इसका मतलब यह नहीं है कि वे कोई बहुत उच्च कोटि के आदमी थे. नेता रहे होंगे पर आदमी दो कौड़ी के भी नहीं थे. वे बच्चों को नहीं उनकी मम्मियों को प्यार करते थे. उनके बारे में जितना जानोगे, उनसे उतनी ही घृणा होगी. देश के धीमे विकास अर्थात विनाश का कारण नेहरु थे.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      सही लिखा भाई साहिब , हम जब कभी भी नेहरू गांधी के बारे में पड़ते हैं तो उनकी ब्राईट साइड ही लिखी होती है . राजीव दीक्षित के कुछ विडिओ देखे तो हैरान हो गिया .

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