कविता

ज़मीर

पानी पर खिंच रहा हूँ लकीर

मन मेरा न जाने क्यों है अधीर 

रेत  पर लिखा हुआ तुम्हारा नाम 

मिटा गया हैं

अपनी उँगलियों से समीर 

मुझ लहर को

मिल  गया था किनारा 

ख़्वाब देखने लगा था हसीन 

एक अकेले सफ़ीना  सा 

फिर मँझधार  में पहुँच गया हूँ 

तन्हाई का महासागर हैं असीम 

फिर से सफर 

हो गया है कठिन 

कोई पत्थर के एक टुकड़े  की तरह

उठाकर 

मुझे भी उछाल दे 

जल की सतह पर फिसलते फिसलते 

मैं भी पहुँच जाऊंगा तुम्हारे करीब 

तुम्हारी तरह 

तुम्हारे शहर में भी है कशिश 

 बिना तुम्हारे

मेरे पैरों तले 

खिसक गयी है जमीन 

मैं शरीर हूँ 

तुम  हो मेरा जमीर 


किशोर कुमार “खोरेन्द्र”

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “ज़मीर

  • विजय कुमार सिंघल

    गहरा अर्थ लिये रहस्यमय कविता.

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