कविता

घना सहरा

 

चाँद सा जिसका सुंदर चेहरा है
उसकी चाँदनी ने मुझे आ घेरा है

हर तरफ उजाला सा लगता है
वहाँ का छंट गया अंधेरा है

रात भर सपनों में तारो सा जगमगाते हो
मेरे ख्यालों मे तेरी यादों का सुनहरा सवेरा है

घोसलें में शाम होते ही लौट आते हैं जैसे पंछी
मेरा हृदय भी तेरे इंतज़ार का रैन बसेरा है

बहारों के मौसम सा लगाने लगा हैं हर एक पल
अपने अपने दिल पर अधिकार अब रहा न तेरा न मेरा है

पेड़ के नीचे छाँव ठहरी रहती हैं जैसे
तेरी पलकों में मेरे लिए घना सहरा है

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

One thought on “घना सहरा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता. पर यह ग़ज़ल नहीं है.

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