कविता

पानी में भी प्यास है

आधी रात हो गयी …है …

मै सो नही पा रहा हूँ

भागते हुए ट्रेन की –

एक बोगी की एक सीट की –

खुली हुई खिड़की से -अँधेरे में

घुली हुई चन्द्रमा की रोशनी मुझे निहार रही है

सारे वृक्ष लगते हैं

मुझे छोड़ कर लौट रहें है

ठंडी हवा के झोके …

कभी मेरे माथे कों ,कभी मेरे ….

गालो कों सहला रहें है

धरती और आकाश ……..

जहाँ पर मिलते से दिखायी दे रहें है –

वहाँ से दूरी ………मेरे पास आ कर मुझे

छू छूकर -बार बार …चली जा ही है

कभी कभी पुल के नीचे से –

नदी के बहते जल कों स्पर्श कर

लौटी …कर्कश आवाज के संकोच कों भी …..

मै सुन रहा हूँ

कम्बल से लिपटे हुए

लोग बेसुध सोये हैं

लेकीन आश्चर्य …..?

लगातार बात किये जा रहें …

अपने ही प्रतिरूप -से ….

मै चाहता हूँ .. वह चुप हो जाए

वह भी सो जाएँ

मेरी हर बात पर अपने ही समर्थन के बिना ….

मै चाहता हूँ ……निपट अकेला रह जाउँ

मानों मुझे कोई छान ले

मानों मुझे आकर कोई निचोड़ ले

मै मिश्रित किये जल से -अलग होकर …

केवल विशुद्ध दूध सा रह जाउँ

मै देह से अलग होकर -मन के आनंद का

मात्र -रस रह जाउँ

लेकिन

अपने इस छने

हुए अंतिम अस्तित्व के

आखरी कण में भी –

मुझ प्यासे तट के –

रेत के अन्नत कणों के ख्याल में

तुम -एक नदी -तो बची रहती ही हो

और

यदी मै ….? नदी होता हूँ तो

उसे तट के बाहों के सहारे की जरूरत पड़ती ही है

चाहने पर भी हम अकेले हो ही नही सकते

पानी मे भी प्यास है

किशोर कुमार खोरेंद्र

किशोर कुमार खोरेंद्र

परिचय - किशोर कुमार खोरेन्द्र जन्म तारीख -०७-१०-१९५४ शिक्षा - बी ए व्यवसाय - भारतीय स्टेट बैंक से सेवा निवृत एक अधिकारी रूचि- भ्रमण करना ,दोस्त बनाना , काव्य लेखन उपलब्धियाँ - बालार्क नामक कविता संग्रह का सह संपादन और विभिन्न काव्य संकलन की पुस्तकों में कविताओं को शामिल किया गया है add - t-58 sect- 01 extn awanti vihar RAIPUR ,C.G.

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