कविता

***** वक्त बदल गया है *****

***** वक्त बदल गया है *****
लोग कह्ते हैं वक्त बदल गया है,
पर मुझे तो लगता है इंसान ,
बदल गया है!
वक्त तो हमेशा से ,
 अपनी गति से चल रहा है!
पर ऊँचा उठने की चाह में,
इंसान और गिर रहा है!
हर तरफ़ बिखरा हुआ है,
स्वार्थ और लालच यहाँ!
रिश्तों को भी मतलब से,
निभा रहा हर इंसान यहाँ!
चीख रही इंसानियत रो
रो रही मानवता!
खुद ही खुद की लाश को,
ढ़ो रहा हर इंसान यहाँ!
विशवाश,अपनेपन,और ,
 जज्बातों की कब्र पर,
रिशतों के फ़ूलों की
 चादर, चढ़ा रहा  है,
 हर इंसान यहाँ!
लोग कहते है वक्त बदल गया है,
पर मुझे तो लगता है इंसान ,
बदल गया है!
...राधा श्रोत्रिय​"आशा"
 All rights reserved.

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “***** वक्त बदल गया है *****

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी कविता. वास्तव में वक्त के साथ इन्सान बदलता रहता है.

Comments are closed.