सामाजिक

डिप्रेशन : आज की बढ़ती समस्या

हमारे जीवन में किसी के भी प्रति दो तरह का नज़रिया होता है, (१) नकारात्मक (२) सकारात्मक​, नकारात्मकता ..जो कि आगे जाकर अवसाद की स्थिति निर्मित कर देती है! पहले थोडा सकारात्मक पहलू को देख लेते हैं.

जब व्यक्ति की सोच पोजिटिव मतलब सकारात्मक होती है, वह लोगों की बात सुनता-समझता है ,उसके बाद अपने विचार रखता है ! हर परिस्थिति में वो खुश रहता है,और लोगों को भी खुश रखने की कोशिश करता है! हमेशा चुस्ती -फुर्ती से भरा छोटी-छोटी बातों में खुशियाँ तलाश लेता है ! दूसरों पर व्यंग्य बाण चलाने की जगह अपने कार्यों को प्राथमिकता देता है ! उसकी हर सुबह खुशनुमा और उम्मीद से भरी होती है ! ऐसा आदमी ही अपने घर परिवार को भरपूर खुशियाँ दे पाता है !सकारात्मकता इंसान को आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करती है !…

पर क​ई बार परिस्थितियों से घबराकर व्यक्ति अपने आपको अकेला महसूस करने लगता है, ऐसे में धीरे- धीरे वो सबसे दूर होने लगता है,एक ही विचार उसके मन​-मष्तिष्क में कौंधता रहता है कि उसके साथ ही सब गलत हो रहा है,पहले तो सब बहुत अच्छा था ,अब क्यों नहीं है,वह अपने आपसे और हालातों से ताल​-मेल नहीं बिठा पाता !इसके कारण उसका मानसिक संतुलन गडबडाने लगता है,वह सही तरह से फैंसला लेने में खुद को असहज़ महसूस करता है!  उसका दिल कुछ और सोचता है दिमाग कुछ और कहता है ! आगे जाकर यही हालात उसकी सोच को नकारात्मक बनाने लगते हैं !उसे दूसरों की हर बात में बुराई नज़र आने लगती है!दूसरों द्वारा दी गयी सही सलाह या कोई भी बात उसे अच्छी नहीं लगती !उसे लगता है, अमुक व्यक्ति  को अपने पद या पैसे का गुमाँन है ! यही सोच उसे उसके अपनो से दूर कर देती है ! वह घंटो अकेला बैठना या गुमसुम रहना पसंद करता है ! धीरे -धीरेउसे डर लगने लगता है, किसी बिशेष आवाज या किसी का जोर से बोलना भी उसे भयभीत कर देता है !उसका आत्मविश्वास कमजोर पडने लगता है! वह पूरी तरह से नकारात्मकता से घिर जाता है!

ऐसी परिस्थितियों में वह व्यक्ति बुरी तरह घबरा जाता है, इसके चलते क​ई बार जीवन के प्रति उसका नज़रिया उदासीन भी हो जाता है ! वह अपने आप से घबरा जाता है, यदि वक्त रहते उसे सहारा देकर सम्हाला न जाये तो स्थिती बहुत बिगड भी सकती है,ऐसे में जरूरत होती है, तो अपनो के प्यार, विशवाश ,सहानुभूति और धीरज की!समय रहते डाक्टर की मदद लेकर उसे इस परिस्थिति से बाहर निकाला जा सकता है ! पर सबसे ज्यादा जरूरत अपनो के प्यार और संयम की होती है!क्योकि अवसाद के कारण वह बहुत जिद्दी और चिडचिडा हो जाता है!आज के बदलते परिवेश और एकल परिवारों के चलते ये समस्या दिन-ब​-दिन बढ़ती जा रही है !एकल परिवारों में सुरक्षा की भावना की कमी रहती है !साथ ही आज की रहन -सहन की पद्धती और कार्य शैली भी इसके लिये काफी हद तक जिम्मेदार है!

प्राईवेट कंपनियों में टारगेट पूरा करने को लेकर बहुत प्रेशर रहता है ! क​ई बार टारगेट पूरा नहीं कर पाने का टेंशन व्यक्ति के दिमाग पर इस कदर हावी रहता है ,कि उसके निर्णय लेने और सोचने समझने की क्षमता भी प्रभावित हो जाती है !और वह खुद को टूटा हुआ महसूस करने लगता है!उसे लगने लगता है कि शायद वो सक्षम नहीं है !उसे बार​- बार प्रताडित किया जाता है,इन सबके चलते क​ई बार इंसान हालातों के आगे नतमष्तक हो जाता है !यदि वह व्यक्ति कर्मठ,और स्वाभिमानी है, तो वह यह सब बरदाशत नहीं कर पाता और टूटकर बिखर जाता है !डाक्टर इस समस्या को डिप्रेशन का नाम दे देते हैं !आज अधिकांश वयक्ति परिस्थितियोंवश इस समस्या से जूझ रहें हैं !और धीरे-धीरे यह बढ़ती ही जा रही है !इससे बाहर निकलना बेहद जरूरी है !

इसके लिये जरूरी है कि जीवन शैली और कार्य शैली में बदलाब लाया जाये!इसके द्वारा धीरे-धीरे इस​ समस्या को कम किया जा सकता है !और अपनों के प्यार और विश्वास भरे साथ के द्वारा हम अवसाद जैसी समस्या को जड से मिटाने में कामयाब हो सकते हैं!
…राधा श्रोत्रिय​”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

One thought on “डिप्रेशन : आज की बढ़ती समस्या

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छा लेख.

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