कविता

कविता : रेत के पन्नों पर

रेत के पन्नों पर मैंने
उनको अपना पैगाम लिखा
कलम मैं प्रीत की स्याही भर​
अपने दिल का हाल लिखा
तुम बिन दिन मुशकिल से
कटते
रातें अब शूल सी चुभती है
चाँद देख जल उठता है मन​
चाँदनी सौतन लगती है
विरह की आग मैं जलता
तन​-मन​
कि अब ये दूरी न सही जाती है
अशको से लिख नाम तुम्हारा
हवाओं से निवेदन करते है
उड़ाकर मेरी चाहत का पैगाम
तुम्हारे आँगन मैं बिखराये
मेरी तड़प का कुछ एहसास
तुम्हारे दिल तक भी पहुँचाये
प्रेम कोई खेल नहीं हमदम
प्रेम एक साधना होती है
दो दिलों की आहुती चढ़ती
तब ये साधना पूरी होती है
तुमने हमको दर्द दिया है
उपचार भी अब तुम ही करना
हमारे दिल के ज़ख्मों पर अब​
अपने प्यार का मरहम रखना
“आशा” की धड़कन मैं तुम हो
प्यार भी तुमसे करते हैं
मेरी हर साँस भी देखो कि
नाम तुम्हारा ही जपती है
…राधा श्रोत्रिय​”आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “कविता : रेत के पन्नों पर

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह वाह ! बहुत खूब !!

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    कविता बहुत अच्छी लगी . रेत के पन्नों की जगह कागज़ के पन्नों पर होती तो माने बदल जाते किओंकि रेत पर लिखे शब्द हवा के एक झैंके से बिखर सकते है .

Comments are closed.