कहानी

इन्द्रधनुष पर बादल

“ इन्द्रधनुष पर बादल… !!! “

दहेज़ पर लिखी Sangeeta Singh बहना की रचना पढ़ी लगा कुछ मेरे पास भी है जो बताना चाहिए…. !!
( 1 )
कहानी बहुत ही पुरानी है …
एक लडकी की शादी उसका भाई तैय करता है …. लड़का दहेज़ का विरोधी है… लडकी के पापा बहुत खुश हुए ,
उनकी हैसियत एक ऑफिसर दामाद खरीदने की नहीं थी ….
दहेज़ लेने की हैसियत तो लड़के-वालों की भी नहीं थी ….
भाई को लेन-देन (दहेज़ ) का लिस्ट दिया गया ….
बाद में मोटर-साईकिल को बदल कर T.V. और फ्रिज कर दिया जाता है ….
गहने जब बन गए तब उसे तुडवा कर भारी बनवाने का आदेश दिया गया… लिस्ट में अलमीरा भी था ……
जिसे शादी के समय नहीं दिया जा सका… बाद में दिया जाएगा ऐसा भाई ने वादा किया.
लेकिन लड़के ने लड़की से मना करवा दिया, जो लड़के के घरवाले को पता नहीं था…
अल्मीरा नहीं मिला इस का गुस्सा लड़के की माँ लड़की के हर रिश्तेदारों ( जो लड़की से मिलने आते ) के सामने जताती…
शादी के समय ही रिश्तेदारों के बात-चीत से लड़के को दहेज़ के बारे में पता चल जाता है… उसे गलतफहमी हो जाती है – मेरे घरवाले दहेज़ मागें नहीं, लड़की के रिश्तेदार बात कर रहें हैं, जरुर लड़की के पापा ने ही बात फैलाए हैं …
लड़के को अपने ससुर से चिढ हो जाती है… वो अपनी नाराजगी जब-तब दिखला देता…
लड़की के पापा ने लड़के के पैरों पर झुक कर माफी भी मांगी…
लेकिन लड़के को विश्वास नहीं होना था …नहीं हुआ…
ससुर की जिंदगी समाप्त भी हो गई , नाराजगी कायम रही है “
…………….क्योकि लड़के को अपनी माँ पर अँधभक्ति थी… लड़के के माता – पिता को गर्व था कि उनका बेटा श्रवण है… ! होना भी चाहिए…. !!
उस युग में माँ-बाप अंधे थे…
इस युग में उनका बेटा अक्ल का अंधा-बहरा है…
लेकिन केवल ससुराल पक्ष के लिए… उसके विचार अपने घर वाले के लिए अलग थे और ससुराल वालों के लिए अलग थे … !! “

( 2 )
दो साल पहले की बात है
“ ब्राह्मण का बेटा और तेली की बेटी के love-marriage को arrange-marriage का शक्ल दिया गया!
तिलक में लेन-देन का showoff, लड़के की माँ, दादी – नानी को “ set “ और पिता, दादा – नाना को गले का चेन , चांदी के बड़े-बड़े बर्तन , फ्लैट , गाडी , Cash, पटना से दिल्ली , राजधानी से सभी बाराती का टिकेट , दिल्ली में fresh होने के लिए 5star होटल में ठहराना… दिल्ली से राजस्थान , वोल्वो बस की व्यवस्था …. वापसी में बेटी-दामाद plane से और सभी बाराती ट्रेन से…
दोनों परिवार काफी सम्पन्न… !!
जो शादी आदर्श-विवाह हो सकती थी, समाज के लिए मिशाल बन सकती थी,
एक नया दौर शुरू हो सकता था, वो क्या बन कर रह गया… ?

=
दहेज एक फैशन भी है जिसके लिए कौन ज्यादा जिम्मेदार है लड़का वाला या लडकी वाला कहना मुश्किल है …..

=जब मेरे बेटे की शादी की बात चलने लगी तो एक ही शर्त थी कि हम एक पैसा भी लडकी वाले का खर्च नही होने देंगे …. कोर्ट मैरेज हो और रिशेप्शन पार्टी हमलोग देंगे जिसमें दोनों पक्ष के लोग शामिल हों …… बिहार में सम्पन्न परिवार एकलौता लड़का और लडके वाले दहेज ना मांगे तो खोट है …. हम लोग चार साल इन्तजार किये या यूँ कहिये जो होनी होता है वही होता है ….. शादी तो हमारे शर्तों पर ही हुई …..

=दहेज पर हम कागज चाहे जितना काला कर लें ….. U.P Bihar से नहीं मिटेगा

“ परछाई – धुप – हवा , पकड़ पाते ,
केश – तारे , गिनती कर पाते ,
आत्मा का दीदार कर पाते… ”

” कोई ऐसा तराजू – बटखरा मिल जाता ,
जिस में रिश्ते नापा – तौला जाता ,
कोई हैरानी – परेशानी नहीं होती,
रिश्ते निभाने में आसानी जो होती… !! ”

“ इन्द्रधनुष पर बादल“ फिर कभी तो न होते… !!! “

*विभा रानी श्रीवास्तव

"शिव का शिवत्व विष को धारण करने में है" शिव हूँ या नहीं हूँ लेकिन माँ हूँ

4 thoughts on “इन्द्रधनुष पर बादल

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया लिखा है. यह बीमारी समाज में इतनी गहरी है कि आदर्श विवाह की बात करने वाले भी शक से देखे जाते हैं.

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      बहुत बहुत धन्यवाद भाई

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विभा बहन , जब भी ऐसी कहानिआन पड़ता हूँ तो मुझे ऐसे लोग जो सिर्फ दाज लेने के लिए ही जीते हैं पर बहुत क्रोध आता है . गुरदुआरे मंदिरों में धर्म का पखंड करते हैं लेकिन जो किसी को दुःख देते हैं उस में उनको ख़ुशी होती है जैसे एक कसाई बकरे को जिबाह करते समय खुश होता है . १९६७ में हमारी शादी दस ब्रातिओं और बगैर दाज के हुई थी लेकिन आज २०१४ में भी यह कोहड़ दूर नहीं हो सका . धिक्कार है ऐसे समाज पर . आप ने जो लिखा सच है , मैंने भी बहुत कुछ देखा है . लेकिन मैं अपने को खुश किस्मत समझता हूँ कि मेरा ऐसा विवाह करने से मेरा सारा खानदान सुख में है किओंकि हम पहले ही कह देते हैं कि अगर दाज दहेज़ की बात करनी है तो हम बात आगे नहीं बढाएंगे .

    • विभा रानी श्रीवास्तव

      शुभ संध्या भाई …. आभारी हूँ

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