कविता

कविता : मौन रहकर भी…

मौन रहकर भी मुखर जो हो रहा है,

दर्द चेहरे से बयां  वो हो रहा है ।

 

सोचा था जिऊँगा खुशहाल होकर ,

तनहा जीवन आज बोझिल हो रहा है ।

 

उम्र गुजरी सोचा नहीं मैंने कभी कुछ ,

जो नहीं सोचा वही सब हो रहा है ।

 

साथ थे मेरे हजारों हम सफ़र ,

आज क्यों सूना सा जीवन हो रहा है ?

 

मधुमास के दिन और रातें अब कहाँ ,

पतझड़ सा यौवन,उजड़ा सा आँगन हो रहा है ।

 

आंसू नहीं बहते मेरी आँख से अब ,

राजे दिल , कौन फिर खोल रहा है ?

डॉ अ कीर्तिवर्धन

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One thought on “कविता : मौन रहकर भी…

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता.

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