लघुकथा

बाबाजी की भभूत

” सासु माँ मेरा लाल रमिया आँख ही नहीं खोल रहा है,कुछ करो ना जल्दी से इसे डाकदर के पास ले चलो |, सीता ने रोते हए अपनी सास को कहा | सास निम्मो ने देखा तो एकबारगी वो भी घबरा गयी पर जल्दी ही अपने को सहज करते हए बोली| ” मत डरो , बाबाजी ने जो भभूत दी है वो जल्दी से इसके शारीर पर मल दो कुछ ही देर में आराम आ जायेगा बिटवा को |,

सीता डरी हुई तो थी गुस्से से उबलते हुए बोली ” अम्मा जी आप इन झोला छाप बाबाओ पर विशवास कीजिये मै तो अपने बिटवा को ऐसे बाबाओ के चक्कर में पढ़ कर मरने नहीं दे सकती | डॉ ने देखने के बाद बताया ”बिलकुल सही समय पर आप इसे अस्पताल ले आयी, इसे पीलिया और तेज बुखार है | जो वक्त पर इलाज ना होने पर बच्चे को जान से भी हाथ धोना पड़ सकता है

— शान्ति  पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

4 thoughts on “बाबाजी की भभूत

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी लघुकथा. अन्धविश्वास से केवल हानि ही होती है. इससे बाहर निकलना आवश्यक है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    पता नहीं कब यह लोग बाबाओं के चुंगल से निकलेंगे . जागरूपता के लिए यह कहानी बहुत अच्छी लगी .

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