मुक्तक/दोहा

मुक्तक

ऋतु शिशिर आयी, सर्द समीर ने दी दस्तक
नभ घटा छाई घनघोर, मावट की दस्तक
अवनि छुपी है, आज कोहरे की ओट
मौसम की मार सूरज ने नही दी दस्तक

— शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

One thought on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    बढ़िया !

Comments are closed.