कविता

मुक्तक

मापनी- 2122 2212 22

ज़िंदगी के काबिल सभी होंगें,
प्रौढ़ता में शामिल सभी होंगे,
फलसफा कैसा ज़िंदगी का है,
मौत को तो हासिल सभी होंगें।

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

One thought on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह

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