कविता

स्त्री

हमने तो जिसे भी चाहा,
वहाँ सिर्फ़ धोखा ही,
मिला !
जिसके लिये हमने ,,
अपनी हर खुशी,
हर चाहत तक,
कुर्वान कर दी !
पर बदले में, सिर्फ़ धोखा,
ही मिला !
वो हमे, समझ ही,
नहीं पाया,!
हम उसकी खुशी,
खोजते रहे,
वो हमारी खुशी,
छीनता रहा !
हम उसे पूजते रहे,
वो हमे प्रताड़ित,
करता रहा !
क्यों??????
क्योंकि वो एक पुरुष है !
इसलिये उसका अहं उसे,
उसकी गल्तीयों का,
एहसास नहीं होने देता !
या गल्तीयाँ करने की
इजाजत देता है !
क्या स्त्री होना हमारा ,
कसूर है ????????
या पुरुष की ज्यादती ,
बरदाशत करना .,
लगता हे, कसूर हमारा
ही है !
पाषाण में इंसान ,
तलाशने की कोशिश
की हे, हमने !
पर क्या, पाषाण कभी,
पिघलता है !
अब हमें ही बदलना,
होगा, अपनी खुशी,
और अधिकारों के,
लिये लड़ना होगा !
क्योंकि, पुरुष ने,
हमारे त्याग,प्यार,और
समर्पण, को हमारी,
कमजोरी, समझ लिया है !
पर स्त्री होना, कोई गुनाह,
नहीं ,स्त्री ने पुरुषों को सिर्फ़
दिया ही है !
बेटी,बहिन,पत्नि,माँ हर रूप,
में ,वो अपना सर्वस्व न्योछावर
करती आई है ,और बदले में,
हमेशा अपमान और पीड़ा
उसकी झोली, में आये !
जिस आँचल की, छाँव तले
वो एक पुरुष को, पाल-पोषकर,
बड़ा करती है !
उसी आँचल को, पुरुष बार- बार ,
दागदार, करता आया है !
अब और नहीं, स्त्री कमजोर नहीं,
आज की स्त्री, अपने अधिकारों के,
लिये लड़ना जानती है !
” में एक स्त्री हूँ”
मुझसे है मेरी पहचान !
माँ के रूप में,जननी,
जन्मदात्री, सृजन करने
वाली !
अगर में न हूँ तो क्या
होगा ,इस संसार का???
शायद पुरुष विहीन

…राधा श्रोत्रिय “आशा”

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

2 thoughts on “स्त्री

  • @yuva-9461cce28ebe3e76fb4b931c35a169b0:disqus ji ..aabhar aapne kavita ko pasand kiya or jeevan se jodkr dekha..pr aaj bhi hr ghar k halat achche nahi h..bahut se sabharnt parivaar aaj bhi is tarah k h jo sirf barabari ka huq dene ka dikhava krte h pr unki mansikta aaj bhi pichdi h unke liye orat hukum ki gulam h..pr aaj stri apne hako k liye ladna janti h..or apne adhikaar lena use bakhoobi aata h..

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राधा जी , आप ठीक कहती हैं , औरत ने दुःख ही उठाये हैं पुर्ष के हाथों . अक्सर हम कहते हैं कि पुराने ज़माने में तलाक नहीं होते थे और वोह दिन अछे थे और आज तलाक ज़िआदा होने लगे हैं , ज़माना बुरा हो गिया है . लेकिन पुराने ज़माने में इस्त्री पुरी तरह मरद की गुलाम थी . मरद जब चाहे उस के मुंह पर तमाचा मार देता , वोह तो सिर्फ बच्चे पैदा करने की मशीन , घर की नौकर और मर्द की ऐश के लिए ही थी . मैंने अपनी माँ को देखा है , वोह विचारी घुंगत निकाले ही बाहिर जा सकती थी , उस ने कभी गाँव का दूसरा हिस्सा नहीं देखा था , पिता जी जब चाहे उसे झिडक देते और वोह विचारी रो पड़ती . मेरे बाबा जी भी उस को झिड़क देते और वोह रोती रहती . आज औरत जाग उठी है और जागना चाहिए भी था . यहाँ आ कर मैंने देखा कि अँगरेज़ मरद औरत के साथ किचन में बराबर काम करते हैं , जब वोह शाम को पब्ब में रिलैक्स होने के लिए जाते हैं तो बच्चों को भी साथ ले कर जाते हैं . बच्चे चिल्ड्रन रूम में खेलते रहते हैं और मिआं बीवी बार में ड्रिंक लेते हैं . अब भारत की औरत पड़ लिख गई है और उस को बराबर के हक मिलने चाहिए .

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