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कब्ज की सरल चिकित्सा

आकस्मिक दुर्घटनाओं को छोड़कर सभी रोगों की माता पेट की खराबी कब्ज है। इसमें मलनिष्कासक अंग कमजोर हो जाने के कारण शरीर से मल पूरी तरह नहीं निकलता और आँतों में चिपककर एकत्र होता रहता है। अधिक दिनों तक पड़े रहने से वह सड़ता रहता है और तरह-तरह की शिकायतें पैदा करता है तथा बड़ी बीमारियों की भूमिका बनाता है। इसलिए प्राकृतिक चिकित्सा में सबसे पहले कब्ज की ही चिकित्सा की जाती है। एक बार कब्ज कट जाने पर रोगी का स्वस्थ होना मामूली बात रह जाती है।

कई लोग कहते हैं कि हमें कब्ज नहीं है, क्योंकि हमारा पेट रोज खूब साफ हो जाता है। वे लोग गलती पर हैं, क्योंकि रोज शौच होते रहने पर भी कब्ज हो सकता है। इसे यों समझिये कि घर में हम रोज झाड़ू लगाते हैं और काफी कूड़ा निकालकर फेंकते हैं। फिर भी होली-दिवाली पर विशेष सफाई करने पर घर में बहुत कूड़ा निकलता है। कब्ज भी इसी प्रकार होता है।

कब्ज की प्राकृतिक चिकित्सा है- पाचन शक्ति को मजबूत बनाना और मलनिष्कासक अंगों को सक्रिय करना। इसके लिए जाड़ों में पेड़ू (पेट का नाभि से नीचे का भाग) पर 2-3 मिनट तक ठंडे पानी में कपड़ा भिगोकर पोंछा लगायें, ताकि वह भाग ठंडा हो जाये। आप बर्फ का टुकड़ा लेकर भी लगा सकते हैं। फिर हल्का व्यायाम करके शरीर को गर्म कर लेना चाहिए। इससे कब्ज में बहुत आराम मिलेगा। इस क्रिया को आवश्यकता के अनुसार कितने भी दिन तक किया जा सकता है। जिनका कब्ज बहुत पुराना हो, उन्हें प्रारम्भ में इस क्रिया के साथ एक-दो दिन उपवास भी करना चाहिए।

कब्ज पाचन शक्ति को बहुत कमजोर कर देता है और सब कुछ खाते रहने पर भी व्यक्ति कमजोर ही रहता है। ऐसी स्थिति में पाचन शक्ति को मजबूत करने के लिए हर तीन दिन बाद पेड़ू पर पहले गर्म पानी से तीन मिनट पोंछा लगाना चाहिए, फिर ठंडे पानी से 1-2 मिनट पोंछा लगाना चाहिए।

कब्ज न हो, इसके लिए खान-पान में सुधार करना आवश्यक है। उन वस्तुओं से बचना चाहिए जिनके कारण कब्ज हुआ था। मौसम के अनुसार अमरूद, सेब, सन्तरा आदि फल और गाजर, मूली, ककड़ी, खीरा आदि सब्जियां कच्ची खानी चाहिए। प्रतिदिन पर्याप्त मात्रा में पानी भी पीना चाहिए। यदि सप्ताह में एक बार उपवास या रसाहार भी कर लिया जाय, तो कभी कब्ज होने का प्रश्न ही नहीं उठता।

डॉ. विजय कुमार सिंघल

नाम - डाॅ विजय कुमार सिंघल ‘अंजान’ जन्म तिथि - 27 अक्तूबर, 1959 जन्म स्थान - गाँव - दघेंटा, विकास खंड - बल्देव, जिला - मथुरा (उ.प्र.) पिता - स्व. श्री छेदा लाल अग्रवाल माता - स्व. श्रीमती शीला देवी पितामह - स्व. श्री चिन्तामणि जी सिंघल ज्येष्ठ पितामह - स्व. स्वामी शंकरानन्द सरस्वती जी महाराज शिक्षा - एम.स्टेट., एम.फिल. (कम्प्यूटर विज्ञान), सीएआईआईबी पुरस्कार - जापान के एक सरकारी संस्थान द्वारा कम्प्यूटरीकरण विषय पर आयोजित विश्व-स्तरीय निबंध प्रतियोगिता में विजयी होने पर पुरस्कार ग्रहण करने हेतु जापान यात्रा, जहाँ गोल्ड कप द्वारा सम्मानित। इसके अतिरिक्त अनेक निबंध प्रतियोगिताओं में पुरस्कृत। आजीविका - इलाहाबाद बैंक, डीआरएस, मंडलीय कार्यालय, लखनऊ में मुख्य प्रबंधक (सूचना प्रौद्योगिकी) के पद से अवकाशप्राप्त। लेखन - कम्प्यूटर से सम्बंधित विषयों पर 80 पुस्तकें लिखित, जिनमें से 75 प्रकाशित। अन्य प्रकाशित पुस्तकें- वैदिक गीता, सरस भजन संग्रह, स्वास्थ्य रहस्य। अनेक लेख, कविताएँ, कहानियाँ, व्यंग्य, कार्टून आदि यत्र-तत्र प्रकाशित। महाभारत पर आधारित लघु उपन्यास ‘शान्तिदूत’ वेबसाइट पर प्रकाशित। आत्मकथा - प्रथम भाग (मुर्गे की तीसरी टाँग), द्वितीय भाग (दो नम्बर का आदमी) एवं तृतीय भाग (एक नजर पीछे की ओर) प्रकाशित। आत्मकथा का चतुर्थ भाग (महाशून्य की ओर) प्रकाशनाधीन। प्रकाशन- वेब पत्रिका ‘जय विजय’ मासिक का नियमित सम्पादन एवं प्रकाशन, वेबसाइट- www.jayvijay.co, ई-मेल: jayvijaymail@gmail.com, प्राकृतिक चिकित्सक एवं योगाचार्य सम्पर्क सूत्र - 15, सरयू विहार फेज 2, निकट बसन्त विहार, कमला नगर, आगरा-282005 (उप्र), मो. 9919997596, ई-मेल- vijayks@rediffmail.com, vijaysinghal27@gmail.com

4 thoughts on “कब्ज की सरल चिकित्सा

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    विजय भाई , बहुत अच्छा लेख है और आप की बात सही है , कबज़ हो तो अपने दिल को हर दम एक अहसास सा रहता है कि कुछ सही नहीं है . मुझे तो कबज़ नहीं होती किओंकि मेरी खुराक ज़िआदा सब्जिओं सलाद और फ्रूट से भरपूर होती है लेकिन फिर भी कभी हो जाए तो मैं इस का इलाज अपने हिसाब से कर लेता हूँ . किओंकि हम सभी मीट भी खाते हैं इस लिए मीट के साथ एक फुल प्लेट सलाद की होती है जिस से कोई प्राब्लम नहीं होती . मेरी मिसज़ को अक्सर कबज़ रहती है किओंकि कुछ दवाइआन ऐसी हैं जिस से कबज़ होती ही है . फिर भी वोह फिग या प्रून जो ड्राई फ्रूट हैं लेती है . लेकिन आप ने सही कहा कि कबज़ बीमारीओं की जड़ है इस से बचना चाहिए .

    • विजय कुमार सिंघल

      धन्यवाद, भाई साहब. वास्तव में कब्ज को दूर करना बहुत आसान है. केवल खान-पान में थोडा परिवर्तन करने की जरुरत है. अगर हम कब्ज, जुकाम, खांसी जैसे छोटे रोगों से प्राकृतिक रूप से निबटते रहेंगे, तो बड़े रोग होने की कोई सम्भावना ही नहीं रहती.

  • जय प्रकाश भाटिया

    आदरणीय विजय जी,

    आपकी इस जाकारी के लिए सचमुच धन्यवाद तो बहुत छोटा शब्द है,आपने बहुत ही सही मार्ग दर्शन किया है, नयी पीढ़ी को इस और विशेष ध्यान देने की ज़रुरत है, क्यों की फ़ास्ट फ़ूड का प्रचलन बहुत बड़ गया है, आपने बीमारी के मूल कारण को पकड़ा है, मेरा मानना है की बीमारी जैसी भी हो , मानसिक तनाव उसे बहुत बड़ा देता है, इसके विपरीत शांत मन होना, अच्छे विचार रखना, और मनपसंद संगीत जैसे भजन आदि सुनना , रोग के इलाज़ में बहुत मदद करता है, अर्थात दवा के साथ उत्प्रेरक का काम करता है,

    इस विशिष्ट जानकारी के लिए एक बार फिर से धन्यवाद, —जय प्रकाश भाटिया

    • विजय कुमार सिंघल

      आभारी हूँ, आदरणीय भाटिया जी.

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