कविता

बालगीत : ऐसा कोई जादू हो

जैसे मुझसे दूर हटे माँ
होते मेरे आँसू जारी

छोटे-छोटे हाथ-पाँव हैं
ठीक तरह न चल सकता हूँ
जो घुटनों के बल दौडूँ तो
मत पूछो, कितना थकता हूँ।
माँ की गोदी में जाते ही
पूरी होती ख़ुशी हमारी

घर में ढेरों काम पड़े हैं
सब करने हैं बारी-बारी
चैन मिले न इक पल का भी
थक जाती है माँ बेचारी।
मुझे संभाले या घर देखे
उस पर कितनी ज़िम्मेदारी।

ऐसा कोई जादू हो जो
जल्दी से हो जाऊं बड़ा मैं
ताक़त इतनी आ जाए कि
पैरों पर हो जाऊं खड़ा मैं
सेवा माँ की खूब करूँ फिर
चिंता कर दूँ गायब सारी।
– शादाब आलम

One thought on “बालगीत : ऐसा कोई जादू हो

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा बालगीत !

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