कविता

कविता : बेटी

माँ की आँखों का नूर,
पिता का गुरूर होती है बेटी!
घर की शान और अभिमान होती है बेटी!
फ़ूलों की पंखुड़ी सी नाजुक,
ओस सी पावन होती है बेटी!
धरती पर ईशवर का दिया,
अनमोल वरदान होती है बेटी!
नर्म,नाजुक,कोमल भावनाओं,
का कल-कल बहता झरना होती है बेटी!
दो परिवारों को प्यार की ड़ोर,
से बाँधती है बेटी!
खुश-नसीब होते है वो जहाँ,
जन्म लेती है बेटी!
माँ की आँखों का नूर,
पिता का गुरूर होती है बेटी!

…राधा श्रोत्रिय”आशा”

beti

राधा श्रोत्रिय 'आशा'

जन्म स्थान - ग्वालियर शिक्षा - एम.ए.राजनीती शास्त्र, एम.फिल -राजनीती शास्त्र जिवाजी विश्वविध्यालय ग्वालियर निवास स्थान - आ १५- अंकित परिसर,राजहर्ष कोलोनी, कटियार मार्केट,कोलार रोड भोपाल मोबाइल नो. ७८७९२६०६१२ सर्वप्रथमप्रकाशित रचना..रिश्तों की डोर (चलते-चलते) । स्त्री, धूप का टुकडा , दैनिक जनपथ हरियाणा । ..प्रेम -पत्र.-दैनिक अवध लखनऊ । "माँ" - साहित्य समीर दस्तक वार्षिकांक। जन संवेदना पत्रिका हैवानियत का खेल,आशियाना, करुनावती साहित्य धारा ,में प्रकाशित कविता - नया सबेरा. मेघ तुम कब आओगे,इंतजार. तीसरी जंग,साप्ताहिक । १५ जून से नवसंचार समाचार .कॉम. में नियमित । "आगमन साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समूह " भोपाल के तत्वावधान में साहित्यिक चर्चा कार्यक्रम में कविता पाठ " नज़रों की ओस," "एक नारी की सीमा रेखा"

5 thoughts on “कविता : बेटी

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राधा जी , मेरी भी दो बेतिआं हैं , मुझे इतना खुश रखती हैं कि बता नहीं सकता . एक बेटा है , बहु है , वोह भी मुझे हैपी रखते हैं लेकिन जो बेतिआं ख़ुशी देती हैं वोह एक इलग्ग ही बात है .

  • मुकेश सिन्हा

    बेटी दो कुलों की लाज होती है

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी भावपूर्ण कविता !

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