लघुकथा

लघुकथा : धर्म

पति की लम्बी बीमारी से तंग हुई आभा ने आखिर पंडित की शरण ली | पंडित जन्मपत्री देखकर बोला ” कुत्तो को बिस्किट और कौओ को दही चावल खिलाओ, जल्दी ही आपके पति स्वस्थ होंगे |,गाडी तो बेटा ले गया था,तो ओटो से ही चल दी बाजार | बिस्किट लिए और चल दी कुत्तो को खोजने | एक ढाबे के बाहर कुछ कुत्ते ,कुछ मिलने की आशा में उम्मीद लगाये बैठे मिल गये थे | आभा उन्हें बिस्किट खिलाने लगी | तभी कहीं से कुछ बच्चे आगये और कुत्तो को बिस्किट खाते देखकर अपनी किस्मत की तुलना कुत्तो से करने लगे | एक छोटा सा बच्चा, जो शायद काफी देर से भूखा रहा होगा ,कुत्ते के आगे पड़े बिस्किट में से एक बिस्किट उठा लिया | जैसे ही खाने लगा आभा ने बिस्किट उसके हाथ से छीन लिया और वापस कुत्ते के आगे फेंक दिया | मासूम बच्चा आभा को टुकुर टुकुर देखने लगा |

— शान्ति पुरोहित

शान्ति पुरोहित

निज आनंद के लिए लिखती हूँ जो भी शब्द गढ़ लेती हूँ कागज पर उतार कर आपके समक्ष रख देती हूँ

3 thoughts on “लघुकथा : धर्म

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    शान्ति बहन , आप तो मेरी बहन ही लगती हैं किओंकि आप की तरह मैं भी अंधविश्वास को ख़तम देखने का इछक हूँ . इन पंडतों बाबों महात्माओं का परभाव हमारी जिंदगी में खून में एक नशे की तरह खुल गिया है कि घर में खाने को हो ना हो बाबा के चरणों में पैसे जरुर रखने हैं . घर में पती बीमार हो , डाक्टर से दुआई की वजाए किसी बाबा से झाड फूंक पर पैसे बर्बाद करने हैं .

    • जी गुरमेल भाई …आपकी बहन ही तो हूँ …बाबाओ को तो खत्म ही कर देना चाहिए

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी लघुकथा. लेकिन शायद दुबारा लग गयी है.

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