कविता

गुलमोहर

गुलमोहर तुम
स्वप्निल से
अनुरागी मन लिए
विषम स्थिति में भी
अटल
अडिग खड़े
चिलचिलाती धूप
में लहलहाते
देते छांव
तप्त मन को
मिलता ठांव—–
लाल नारंगी
फूलों की छटा
जैसे सावन की घटा
नयनो को
विश्रांति देते
नीरस उजाड़
प्रकृति में
रास-रंग-उमंग भरते
हमें आहवान करते
परिस्थितियों के
न बनो दास
कर्म पथ पर
चलकर ही
जीवन होता उजास !!

— भावना सिन्हा 

डॉ. भावना सिन्हा

जन्म तिथि----19 जुलाई शिक्षा---पी एच डी अर्थशास्त्र

2 thoughts on “गुलमोहर

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी कविता !

Comments are closed.