सामाजिक

श्रीमद्भगद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-५ 

छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों को जब कोई पुष्ट आरोप समझ में नहीं आता, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ या भाजपा द्वारा किए गए अच्छे कार्यों को भी सांप्रदायिक करार देकर अपना कर्त्तव्यपालन कर लेते हैं। अब तो बिना कुछ किए भी संघ को समाचार पत्रों और न्यूज चैनलों में आवश्यकता से अधिक कवरेज प्राप्त होने लगा है। मुंबई में बम-विस्फोट पाकिस्तानी आतंकवादी करते हैं और डिग्गी राजा आरोपित करते हैं संघ को। सोनिया गांधी का अमेरिका में आपरेशन हुआ है (भारत में तो कोई योग्य डाक्टर है नहीं)। कौन सी बीमारी के लिए शल्य चिकित्सा हुई है, यह तो ज्ञात नहीं, लेकिन घोर आश्चर्य हो रहा है कि दिग्विजय सिंह ने इस बीमारी के लिए आर.एस.एस. को अबतक दोषी क्यों नहीं ठहराया है! इसी क्रम में छद्म धर्मनिरपेक्षवादियों ने श्रीमद्भगवद्गीता को सांप्रदायिक ग्रंथ घोषित किया है।

धर्मनिरपेक्षता (secularism) का अर्थ धर्मविहीनता नहीं होता है। धर्मनिरपेक्ष राज्य का अर्थ होता है – राज्य धर्म के मामलों में तटस्थ रहेगा। नागरिकों को अपना-अपना धर्म पालन करने की स्वतंत्रता रहेगी। राज्य किसी धर्म का पक्ष नहीं लेगा। लेकिन ऐसा हो रहा है क्या? आजकल भारत में धर्मनिरपेक्षता का अर्थ है – हिन्दू विरोध। आंख बंदकर आप हिन्दुओं का विरोध कीजिए, आप सेक्युलर घोषित कर दिए जाएंगे। गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस की दो बोगियों में, जिन लोगों को जिन्दा जला दिया गया, अगर उनके मानवाधिकारों की बात आपने गलती से कर दी, तो आप घोषित सांप्रदायिक हैं। कश्मीर से अपनी बहू-बेटियों की इज्जत-आबरू, अपनी सारी संपत्ति, अपने प्रिय संबंधियों के प्राण लुटाकर जो बचे-खुचे हिन्दू जम्मू पहुंच गए, यदि उनकी चर्चा भूले से कोई कर दे, तो वह घोर सांप्रदायिक है। अब तो सेना की प्रशंसा करने में डर लगता है। सेना की प्रशंसा भी आजकल सांप्रदायिकता की श्रेणी में आता है। कारगिल विजय की वर्षगांठ के अवसर पर पाकिस्तान की खूबसूरत विदेश मंत्री का कार्यक्रम रखा जाता है। कारगिल विजय सांप्रदायिक शक्तियों की विजय थी और हिना रब्बानी के स्वागत में लाल कालीन बिछाना सेक्युलरिज्म है। बटाला हाउस मुठभेड़ में मारे गए परिवार से मिलने राहुल गांधी आज़मगढ़ जाते हैं, लेकिन धर्मनिरपेक्षता के नाम पर नरेन्द्र मोदी का नाम जिह्वा पर लाने के अपराध में देवबंद के कुलपति को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है। ईसाई, मुस्लिम तुष्टिकरण और अंध हिन्दू विरोध धर्म निरपेक्षता है; भारतीय राष्ट्रीयता सांप्रदायिकता है।

धर्मनिरपेक्षता से अच्छा शब्द है सर्वधर्म समभाव। श्रीकृष्ण ने गीता में मानवता को सर्वधर्म समभाव का दिव्य अमर संदेश दिया है। धार्मिक प्रवृति के व्यक्तियों को दो वर्गों में बांटा जा सकता है – निष्काम और सकाम। पहले वर्ग में वे लोग हैं जिनका आध्यात्मिक स्तर सामान्य से ऊँचा है। वे निराकार या साकार परमात्मा को ही अपना सर्वस्व मानते हैं और अद्वैत में विश्वास करते हैं। स्वयं को उसी का अंश मानकर कर्म-साधना में रत रहते हैं। उनका सीधा संवाद परब्रह्म से होता है। दूसरा वर्ग उनलोगों का है, जो अपनी-अपनी पसंद और रुचि के अनुसार विभिन्न देवताओं की आराधना करते हैं। उनकी पूजा का फल भी कालक्रम में परमात्मा को ही प्राप्त होता है, बस बीच में देवता माध्यम बनते हैं। श्रीकृष्ण ने इसे निम्न श्लोक में स्पष्ट किया है —

      यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति।

                  तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम्

                                                      (गीता ७२१)

      जो-जो सकामी भक्त जिस-जिस देवता के स्वरूप को श्रद्धा से पूजना चाहता है, उस-उस भक्त की मैं उसी देवता के प्रति श्रद्धा को स्थिर करता हूँ।

वे आगे कहते हैं –

      स तया श्रद्धया युक्तस्तस्याराधन्मीहते।

                  लभते च ततः कामान् मयैव विहितान्हितान्

                                                      (गीता ७/२२)

      वह पुरुष उस श्रद्धा से युक्त हुआ उस देवता के पूजन की चेष्टा करता है और उस देवता से मेरे द्वारा ही विधान किए हुए उन इच्छित भोगों को निस्संदेह प्राप्त होता है।

सर्वधर्म समभाव पर इतना स्पष्ट और प्रेरणादायक संदेश विश्व के किसी अन्य धर्म ग्रंथ में है क्या? भारत के अतिरिक्त दूसरे देशों के लिए सेकुलरिज्म, जिसे हम आगे “सर्व धर्मसमभाव”  कहेंगे, एक नया शब्द हो सकता है, भारत के लिए नहीं। विश्व के सभी प्रचलित धर्मों में (हिन्दू धर्म को छोड़कर) एक प्रकार की उपासना और एक पैगंबर पर जोर है। भारत के अतिरिक्त विश्व में कहीं भी उत्पन्न धर्म, धर्म की परिभाषा में नहीं आते। वे पंथ हैं और वो भी सेमेटिक पंथ, अर्थात एक देवता, एक पुस्तक और एक पूजा पद्धति का अनुसरण करने वाला पंथ। ऐसे पंथ को मानने वाले अपने पंथ को ही सर्वश्रेष्ठ मानते हैं। वे, जो इनके पंथ को नहीं मानते, उन्हें काफ़िर कहा जाता है। कफ़िरों को सही शिक्षा देकर, धर्मान्तरण कर अपने धर्म में दीक्षित करना शबाब (पुण्य) माना गया है। अगर समझाने-बुझाने पर भी काफ़िर अपने पुराने विश्वास पर अड़ा ही रहता है, तो उसकी हत्या करना धर्मसंगत माना गया है। ऐसा करने से सीधे जन्नत की प्राप्ति होती है।  सेमेटिक पंथ को मानने वाले शान्तिपूर्ण सह अस्तित्व में विश्वास नहीं करते। आज पूरा विश्व आतंकवाद की गिरफ़्त में है। उसका मुख्य कारण पंथों का सेमेटिक होना है। ऐसे में श्रीकृष्ण की उक्तियां पूरी मानवता का मार्गदर्शन करती हैं। गीता के अध्याय ७ के २१वें और २२वें श्लोक में सर्वधर्म समभाव का ही सिद्धान्त प्रतिपादित है।

भारत का सर्वधर्म समभाव वर्तमान संविधान की देन नहीं है और न किसी आधुनिक नेता की। यह भारत की सनातन परंपरा में, यहां के निवासियों के खून में रचा बसा है। पूजा व उपासना की स्वतंत्रता ही नहीं , मनुष्य की पूर्ण स्वतंत्रता को भी उतना ही सम्मान मिला है। पूजा की यह स्वतंत्रता भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति तक सीमित रखी जा सकती है और उसका विस्तार परम आनन्द की प्राप्ति तक भी किया जा सकता है।

गीता के उपदेशों का भारत पर इतना गहरा प्रभाव था कि भारतवर्ष में अनेक संप्रदायों के जन्म और विस्तार होने के बाद भी परस्पर संप्रदायिक सद्‌भाव था। जबसे कुछ विदेशी हमलावरों ने जबर्दस्ती हिंसा के द्वारा अपना संप्रदाय दूसरों पर थोपना शुरु किया, तबसे सांप्रदायिकता का जन्म हुआ।

सोना एक धातु है, जिससे अपनी प्रकृति और रुचि के अनुसार अलग-अलग आभूषण बनाए जाते हैं, किन्तु सोना तत्व सभी गहनों में एक ही रहता है। उसी प्रकार “सृष्टि संरक्षण और विकास” का मूल धर्म एक होते हुए अनेक संप्रदायों का जन्म हुआ। समस्या तब खड़ी होती है जब सोने की अंगूठी पहनने वाला सभी लोगों को बलपूर्वक मात्र अंगूठी ही पहनने के लिए वाध्य करे और अगर अगर कोई सोने की जंजीर पहने, तो उसका गला काट दे। इस प्रकार संप्रदाय और पंथ स्वभाव है लेकिन सांप्रदायिकता विकृति है – अधार्मिक है।

भारतवर्ष में धर्म सर्वव्यापक था – यह जीवन की हर गतिविधि का एसिड टेस्ट था। गीता कहती है – “छिन्नद्वैधा यतात्यानः सर्वभूतहिते रताः” — संपूर्ण भूतप्राणियों के हित में रत वह पुरुष अपनी संपूर्ण वासनाओं को जीत लेता है। एक धार्मिक पुरुष की यही विशेषता है। समाज के हित में व्यक्ति के सर्वांगीण विकास के सूत्र, उसकी इच्छानुसार गीता में प्रतिपादित है। अपने-अपने धर्म के पालन पर श्रीकृष्ण इतना जोर देते हैं कि वे कह उठते हैं –

श्रेयान्स्वधर्मो विगुणः परधर्मात्स्वनुष्ठितात्

                  स्वधर्मे निधनम् श्रेयः पर धर्मोभयावहः॥

(गीता ३/३५)

अच्छी प्रकार आचरण में लाए हुए दूसरे के धर्म से गुण रहित भी अपना धर्म उत्तम है। अपने धर्म में मरना भी कल्याणकारक है और दूसरे का धर्म भय देने वाला है।

गीता में अपनी प्रकृति को परिष्कृत कर, उसका उत्तरोत्तर विकास कर व्यक्ति परिवार और इस ब्रह्माण्ड के साथ परस्पर पूरकता के साथ व्यवहार करने का स्पष्ट निर्देश देती है। यह व्यक्ति के लिए जितना सही है, उतना ही संप्रदाय, पन्थ, सभ्यता, संस्कृति और राष्ट्र के लिए भी है। सभी अपनी सभ्यता और संस्कृति का विकास कर दूसरे को सुख दे सकते हैं, चाहे उनकी सभ्यता वाह्य दृष्टि से गुणहीन ही क्यों न दिखाई पड़े। व्यक्ति की निजता और स्वतंत्रता को संरक्षित और सुरक्षित रखने हेतु गीता में कथित श्रीकृष्ण का उपरोक्त वाक्य पूरे विश्व और संपूर्ण मानव जाति को सुख, शान्ति और सह अस्तित्व प्रदान करने के लिए मील का पत्थर है, आकाश में चमकता ध्रुवतारा है, जो सदियों से संपूर्ण मानव जाति को दिशा का ज्ञान कराता है।

भारत ने विश्व को शून्य (Zero) का उपहार देकर गणित और विज्ञान को गगन की ऊँचाइयों तक पहुंचाने में अद्वितीय योगदान दिया, ठीक उसी तरह सर्वधर्म समभाव का सिद्धान्त देकर गीता और इस देश ने विश्व और संपूर्ण मानवता का अप्रतिम कल्याण किया है। यह संभव ही नहीं कि पूरा विश्व एक ही धर्म का पालन करे। हमें विभिन्नताओं का सम्मान करना ही होगा। विषबुझी वासनाओं की जलती आग में झुलसती दुनिया, सशक्तों की स्वार्थपूर्ण संहारलीला की चक्की में पिसती जनता और त्रस्त मानवता के लिए गीता पूर्व के क्षितिज पर उगते हुए सूर्य की प्रथम किरण है।                                        तमसो मा ज्योतिर्गमय।

                                                   क्रमशः

बिपिन किशोर सिन्हा

B. Tech. in Mechanical Engg. from IIT, B.H.U., Varanasi. Presently Chief Engineer (Admn) in Purvanchal Vidyut Vitaran Nigam Ltd, Varanasi under U.P. Power Corpn Ltd, Lucknow, a UP Govt Undertaking and author of following books : 1. Kaho Kauntey (A novel based on Mahabharat) 2. Shesh Kathit Ramkatha (A novel based on Ramayana) 3. Smriti (Social novel) 4. Kya khoya kya paya (social novel) 5. Faisala ( collection of stories) 6. Abhivyakti (collection of poems) 7. Amarai (collection of poems) 8. Sandarbh ( collection of poems), Write articles on current affairs in Nav Bharat Times, Pravakta, Inside story, Shashi Features, Panchajany and several Hindi Portals.

One thought on “श्रीमद्भगद्गीता और छद्म धर्मनिरपेक्षवादी – चर्चा-५ 

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    लेख बहुत अच्छा लगा सिन्हा जी .

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