सामाजिक

अभय की महिमा

गीता में दैवीय सम्पदा के परिचायक 26 गुणों का वर्णन करते हुए सबसे पहले अभय का उल्लेख किया गया है। अभय का अर्थ है-बाहरी भयों से मुक्ति। भय हैं- मौत का भय, रोग भय, धन-दौलत लुट जाने का भय, शत्रु प्रहार का भय और प्रतिष्ठा हानि का भय आदि। भय का अभाव ही अभय है। डरना मनुष्य ही नहीं सभी प्राणियों की कमजोरी है। मनुष्य स्वयं बलवान व्यक्ति से डरता है और दुर्बलों को डराता हैं, इस प्रकार यह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भय एक संक्रामक बीमारी है, जिसका इलाज अभय है। कहा जाता है कि भय दुःख का मूल कारण है। यहां यह भी कह सकते हैं कि भय पुरुषार्थ का आदि स्रोत है। रोग व भय से आयुर्वेद का आविष्कार हुआ। शत्रु भय से अनेक प्रकार के हथियारों का आविष्कार हुआ। भय से छुटकारा पाने के लिए जितने भी परमाणु बम आदि आयुधों के आविष्कार होते हैं, उतने ही अधिक भय बढ़ते जाते हैं। हमारे अन्तःकरण में सद्गुण और दुर्गुंण दोनों विद्यमान रहते हैं। निर्भयता सभी गुणों की नायिका है। बाहरी भयों में सबसे बड़ा भय मृत्यु का भय होता है। मृत्यु को सखा समझने पर ही हम सुखी रह सकते हैं क्योंकि यह अटल और अवश्यंभावी है।

प्राचीन राज्यशास्त्र में अभय शब्द का उल्लेख अनेक स्थानों पर मिलता है। राज्य में अभय की आवश्यकता बताते हुए कहा गया है कि शासन ऐसा होना चाहिए कि जिसमें हर व्यकित निर्भय हो। निर्भयता व्यक्ति द्वारा आत्म निरीक्षण करके काम, क्रोध, लोभ, मोह और मद आदि विकारों को दूर करने के बाद प्राप्त होती है। भय सारे पापों का मूल है। यदि भय न हो तो व्यक्ति अन्याय सहन नहीं कर सकता है। शास्त्रों में तीन प्रकार की निर्भयता बताई गई है- विज्ञ निर्भयता, परमेश्वर-निष्ठ निर्भयता और विवेकी निर्भयता। विज्ञ निर्भयता परिस्थितियों से उत्पन्न खतरों का सामना करने से आती है। विेवेकी निर्भयता शांत बुद्धि से विवेकपूक प्रयास करने से प्राप्त होती है और परमेश्वर-निष्ठ निर्भयता परमेश्वर की उपासना से प्राप्त होती है। इसलिए मृत्यु से भय रखना अध्यात्म विरोधी है। जहां देह में आसक्ति है, वहीं कायरता है। आत्मज्ञान हो जाने पर कायरता दूर हो जाती है।

कृष्ण कान्त वैदिक

2 thoughts on “अभय की महिमा

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छा लेख. भय एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है. लेकिन यदि अपने और प्रभु के ऊपर विश्वास हो तो बड़े बड़े भयों के बीच भी मनुष्य निर्भय रह सकता है.

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    भय एक सच है , संसारी विअकती भय से मुक्त नहीं हो सकता . एक समाधि में बैठे संत महात्मा के पास अचानक कोई पटाखा छोड़ दिया जाए तो वोह भी भय से काँप उठेगा . भय जानवरों में भी है . कोई भेड़िया शेर को देखेगा तो वोह भी जान बचाने के लिए दौड़ने लगेगा . कहने को तो बहुत लोग कह देते हैं कि मुझे कोई डर नहीं लेकिन हकीकत में ऐसा होता नहीं .

Comments are closed.