कवितासामाजिकहास्य व्यंग्य

डोलू में बैठा भगवान

नंगे पाँव, मैला जिस्म
उस पर लटकता
फटा कुर्ता और
कमर से सरकती
फटी निक्कर

हाथ में छोटा डोलू

और
डोलू में बैठा भगवान

तुतलाती आवाज़
बगवान के नाम
कुछ दे दे अँकल

हाथ में भगवान
और भगवान
की कीमत एक रुपया
किसी ने दिया
किसी ने दुदकारा
कुछ बच्चों का
य़ू बचपन है संवारा

ऊँचे ऊँचे मंच पर
हजारों-लाखों खर्च
मंचों से दीखता रुवाब
जनता को बेचते
सुनहरे खवाब
ये सेवा है या तिज़ारत
कहाँ है खाद्य सुरक्षा

कहाँ है शिक्षा अधिकार

मनरेगा हुई बेकार
गरीब आज भी है लाचार
– विजय बाल्याण (04/03/2014)
cell : 09017121323, 09254121323
e-mail : mrvijaybalyan@gmail.com

विजय 'विभोर'

मूल नाम - विजय बाल्याण मोबाइल 9017121323, 9254121323 e-mail : vibhorvijayji@gmail.com

3 thoughts on “डोलू में बैठा भगवान

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    सही चित्तर दिखाया गरीब बच्चों की जिंदगी का .

  • गुंजन अग्रवाल

    nyc

  • विजय कुमार सिंघल

    कटु सत्य कहा है इस कविता में !

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