सामाजिक

पीके बनी है पीके?

आमिर खान एक बेहद संजीदा आदमी है, समाज के कुरूतियों के खिलाफ उनका उठाये जाने वाला कदम सराहनीय होता है, जिसको समय समय पर वो विभिन्न माध्यमो से उठाते रहते है, जो स्वागत योग्य है.

राजकुमार हिरानी के किचन से खानसामा आमिर ने फिर एक नया फ़िल्मी डिश बनाया है जिसका नाम है पीके, जो की मार्केट के रेस्टुरेंट में बिकने के आधार पर बढ़िया डिश मानी गयी. और जो बिकता है, वो टिकता है, खैर हमारे देश में शराब भी खूब बिकती है, हिट भी है, पापुलर भी है, खूब बिजिनस भी कराती है, यानी समाज सम्मत है ? यानीं विरोध न हो ? बोलो बोलो , बोलोगे कुछ ? पूरी फिल्म विवादों में है, क्यों है? क्योकि हिन्दू संघठन विरोध कर रहे है, क्यों कर रहे है? क्योकि हिन्दू धार्मिक आस्थावों पर चोट है? तो विवाद क्यों है? क्योकि बुध्दजीवी कह रहे की इसमें कुरुतियों पे चोट की गयी है आस्था पे नहीं . ओके .. ओके .

कुरूतियों पे चोट है? लेकिन पूरी फिल्म के एक भी सीन में, दहेज़ प्रथा जैसी कुरीति नहीं दिखी है, मैंने जाती-पाती जैसे गंभीर मुद्दे को भी खोजने की कोशिश की, नहीं दिखा, कई गावों में बाल विवाह जैसी कुरीति आज भी है, लेकिन नदारद, ये सारी कुरीतियाँ हिन्दू धर्म में बखूबी है, कूट कूट के भरी है, लेकिन नदारद.

तो फिर है क्या? विरोध क्यों? और बचाव क्यों? फिल्म का एक वाक्य “मंदिर जाने वाला डरता है” भाई अब मंदिर जाना कुरीति है या आस्था ? वैसे एक बात बता दूँ, अमरनाथ जैसे यात्रावों से ही वहां के लोकल निवासी काई महीनो की रोटी का जुगाड़ करते है. खैर गाय को चारा खिलाने में समाज में कहाँ और किस जगह भूकंप आता है मुझे समझ नहीं आया ? गाय को चारा खिलाने पे समाज किस तरह रसातल के पर्यटन पे जाता है ये हिरानी और आमिर के सूक्ष्म नजर में आ पाया। पीके गैंग की नजर में शायद ये कुरीति हो परन्तु मरे जैसे मूढ़ बुध्धि में ये बात नहीं घुस रही की ये कुरीति कैसे? इसे तो हिन्दू आस्था मानता है.

मूर्ति पूजा करने से समाज में क्या विस्फोट होता है ये मेरे समझ के बाहर की बात है, लेकिन शायद पीके गैंग को ये नहीं पता की ये एक रिचुअल्स है, हाँ इसी में वो ये दिखाते की कुछ पण्डे दलितों का प्रवेश निषेध कर के आँखे दिखाते है, तो थोडा फलदायक समझ में आता है, लेकिन इसमें कुरूति पे नहीं बल्कि रिचुल्स पे प्रहार है.

हर चैनल पे तमाम बुधजिवियों को भी सुना, एक बोला की कोई जबरी नहीं दिखा रहा, ठीक कहे बंधू, तब ड्रग माफिया कैसे गलत? वो क्या किसी को दौड़ा दौड़ा के फ्री में बांटता है? तो क्या वो सही है ? यदि कोई भी आदमी जो आपत्ति करता है तो उस पर आपकी आपत्ति है तो शराब का ठेकेदार गलत कैसे? वहां भी तो लोग खुदे लाइन लगा जाते है गुरु. वेश्यावृत्ति कैसे गलत कैसे? वहां भी तो लोग खुद जाते है? बहुत ही बेहूदा दलील है की आपको बुरा लग रहा तो मत देखिये, कौनो जबरी दिखा रहा? ये कोई दलील हो सकती है? “सैटेनिक वर्सेज’ क्या सल्मनवा जबरी बाँट रहा था सबको? इनोसेंस आफ मुस्लिम्स क्या सबके डी वि डी में जबरी घुसेड़ा जा रहा था ?

इसी फिल्म में किसी कुरीतियों के ऊपर चोट न हो कर के सीधे हिन्दू आस्थावों पर चोट है, तो किसी का विरोध गलत कैसे ?

सलमान रश्दी किताबे तो लिखे थे, क्यों मना कर दिया आने को? “अरे मत पढो” वाली दलील किस बैंक में जमा कराये थे आप ? क्यों नहीं किया डिबेट? फ्रीडम आफ स्पीच, जिसकी आप पीके गैंग के लिए वकालत करते हैं, वो स्पीच आप लोगो का मनमोहन क्यों हो गया? तसलीमा के फ्रीडम आफ स्पीच का कब सपोर्ट किये जबकि वो तो आस्थावों पर बल्कि उसके नाम पर हत्त्यावों का विरोध करती है. भगवान् की मूर्ति में ट्रांसमीटर नहीं मानता हु, लेकिन कृपया यदि आप ये भी दिखा देते की अल्लाह बहरा है तो मामला संतुलित होता, लेकिन हमें मालुम है, इस पॉइंट पे फ्रीडम आफ स्पीच की वकालत करने वालो का स्पीच एक विशेष पॉइंट में घुस जाता है.

हैं, तो एक ठो आदमी कह रहा कि हिन्दू धर्म इतना कमजोर नहीं कि सिनेमा से आहत हो जाय, बराबर कही, सही बात है, लेकिन यही अन्य धर्म पे बनी होती तो वो धर्मवालेतो बाद में पहले आप जैसे बुध्दजीवी स्वयं आहत हो जाते, देखा है हमने, हमको बरगलायियें मत.

चलिए इतने पर भी हिन्दू समाज मान जाए बस एक बार किसी अन्य धर्म के आस्था के खिलाफ कुछ दिखाए, प्लीज दिखाएँ, और हाँ आस्था पर, कुरीति पर नहीं, क्योकि पीके में कुरूतियों पे कुछ नहीं कहा गया है, वो सीधे सीधे मूर्ति पूजा और मंदिरों का विरोध कर आस्था पर प्रहार करता है, पहले इस्लामी आक्रमणकारी तलवार के बल पर यही एजेंडा लागू करते थे और आज पीके में हथियार बदल गया है बस.

आप कह रहे हैं, आप भी हिन्दू है, आप आहत नहीं, क्या बाकी सब ठेकेदार है? भाई आपका सामान है, जहाँ चाहें मराएँ, १०० लोगों से बयाना और लीजिये, किसी को क्या? इसका क्या मतलब सब वही करें? आपको मराने में मजा आता है, तो सबको आना चाहिए ? अरे आपका मन नंगा हो के नाचे, किसी को क्या ?

अरे बुधुजिवियों आपमें इतनी बुध्धि भी नहीं की आप अंतर कर सके क्या कुरूति है और क्या आस्था, और है भी तो बस आपकी सारी समझ हिन्दु वाली गली में ही क्यों हिचकोले खाती है? बाकी आगे भी जोड़ता रहूँगा. तब तक आप फ्रीडम आफ स्पीच का मजा लीजिये – पीके

4 thoughts on “पीके बनी है पीके?

  • विजय कुमार सिंघल

    आपने अच्छे प्रश्न उठाये हैं.

  • महेश कुमार माटा

    बिलकुल सही मंथन किया है अपने। पूर्णतया सहमत हु।
    हँसी आती ह की हिन्दू धर्म की कुरीतियां कौन दिखा रहा ह???? वो लोग जो खुद इंसानियत के दुश्मन है, वो लोग जो आनंकवाद को बढ़ावा देते हैं।।
    जो मूर्ति पूजा को गलत बताते हैं वो 1000 किलोमीटर क्यों जाते हैं हज करने। अल्लाह तो हर जगह है फिर इतनी दूर क्यों????
    हद है हद।।।

    • विजय कुमार सिंघल

      आपकी बात में दम है, महेश जी.

    • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

      महेश जी , मैं आप से सहमत हूँ . मैं भी यही कहना चाहता था . अमीर खान जब भी फिल्म बनाता है उस में कोई गहरा सन्देश होता है . उस के सत्यमेव जयते के तकरीबन सभी एपिसोड देखे . एक एपिसोड में उस ने इस्लाम , हिन्दू , इसाई और सिखों के धार्मिक ढोंग के पोल खोले . अभी तक मैं यही समझे बैठा था कि सिखों में भेद भाव नहीं लेकिन जो उस ने एक गुरदुआरे को दिखाया जिस में मजबी सिखों को परसाद और जगह लेना पड़ता है . एक मजबी सिख ने ऊंची जात के सिखों की जगह से परसाद लेना चाहा तो उस के सर पर परशाद बनाने वाला खुरपा मारा . मैं तो हैरान ही हो गिया .

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