कविता

जो बद् दुआ बन कर उमड़ रही है दुनिया की हर मां के हृदय से ….

चुप है एक माँ,

क्या कह कर मन को मनाए

क्या समझाए किसी को ।

रोती हुई माओं के

साथ ही रो पड़ती है

वह स्वयं….

प्रार्थना ,

सांत्वना

सभी शब्द छोटे और झूठे

नज़र आते हैं।

कब सोचा था किसी ने भी

विदा के लहराते हाथ

किताबें थामें हाथ ,

अंतिम विदाई लिए

खुद किताबों में लिखा इतिहास बना

दिये जाएंगे ।

जो दौड़ आते थे

माँ की एक पुकार पर

अब नहीं सुनाई  देती उनको

कोई भी आवाज़…

माँ किसी को बद् दुआ

कहाँ देती है

लेकिन

उसका तड़पता हृदय

दुआ भी तो नहीं देता ।

वहशी दरिंदों को क्या

अपनी माँ का भी

ख्याल ना आया !

क्या उन्हें दूध का कर्ज

यूं किसी माँ की गोद

उजाड़ कर ही चुकाना था !

सुना है

माँ की  दुआ अमृत की

तो

बददुआ तेज़ाब की बरसात करती है ।

अब इंतज़ार है तो बस

उन वहशी दरिंदों पर

तेज़ाबी बरसातों के बरसने की,

जो  बद् दुआ बन कर उमड़ रही है

दुनिया की हर मां़के हृदय से ।

 

*उपासना सियाग

नाम -- उपासना सियाग पति का नाम -- श्री संजय सियाग जन्म -- 26 सितम्बर शिक्षा -- बी एस सी ( गृह विज्ञान ), महारानी कॉलेज , जयपुर ज्योतिष रत्न , आई ऍफ़ ए एस दिल्ली प्रकाशित रचनाएं --- 6 साँझा काव्य संग्रह, ज्योतिष पर लेख , कहानी और कवितायेँ विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती है।