सामाजिक

नए वर्ष 2015 का स्वागत ‘सत्यं वद धर्म चर’ का शाश्वत संकल्प लेकर करें

आज नए आंग्ल वर्ष 2015 का शुभारम्भ हुआ है। सारा देश और संसार नए वर्ष को अपनी पूरी प्रसन्नता, उत्साह, उल्लास व जोश से मना रहा है। यह अवसर जीवन में कुछ सार्थक व्रत या संकल्प लेने का भी है। व्रत व संकल्प धारण करने से पूर्व यह विचार करना भी आवश्यक है कि हम जो व्रत या संकल्प लें, उससे हमारा वर्तमान जीवन और भविष्य, न केवल इस जीवन अपितु मृत्यु के बाद अर्थात् इहलोक और परलोक दोनों, सुधर सकें। क्या ऐसा कोई व्रत, संकल्प या कार्य हो सकता है जिससे यह उपलब्धि प्राप्त हो सकती है? इसका उत्तर हां में हैं। वह व्रत व संकल्प है कि हम आज के दिन जीवन मे सदैव सत्यं वद धर्म चर का व्रत लें। इन दोनों गुणों को यदि हमने अपने जीवन में धारण कर लिया तो यह घाटे का नहीं वरन् अपने निजी जीवन के लिए बहुत लाभ का सौदा सिद्ध हो सकता है। यह लाभ का सौदा कैसे सिद्ध होगा, इस पर कुछ विचार कर लेना समीचीन है।

पहला विचार तो हम यह करें कि हम यह जानें कि हमें यह जीवन किससे व क्यों मिला है? इसका विवेचित उत्तर है कि यह जन्म हमें ईश्वर से अपने प्रारब्ध का भोग करने व नये शुभ कर्म जिन्हें धर्माचरण का नाम दे सकते हैं, के लिए परमात्मा से उपहार स्वरूप मिला है। परमात्मा की एक स्वतन्त्र अनादि, अनन्त, नित्य, सनातन, अजन्मा, अजर, अमर, अविनाशी सत्ता है। यह परमात्मा सत्य, चित्त व आनन्दस्वरूप, निराकार, सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक, सर्वातिसूक्ष्म, सर्वान्तर्यामी, न्यायकारी, दयालु, सर्वाधार, सर्वेश्वर, पवित्र व सृष्टिकर्ता है। हम जीव वा जीवात्मा है जिसका स्वरूप चेतन, ज्ञानपूर्वक कर्मों का कर्ता, एकदेशी व अतिसूक्ष्म, दृष्टि से अगोचर, ससीम, अनादि, अजन्मा, अमर, नित्य, सनातन, शुद्ध व बुद्ध तथा जन्म-मरणधर्मा स्वरूप वाला है। जीव अर्थात् हम अपने ज्ञान, प्रयोजन, स्वार्थ, माया-मोह, ईष्या-द्वेष आदि में फंस कर शुभ व अशुभ कर्म करते हैं जिससे हम कर्म बन्धनों में फंस जाते हैं। यह कुछ ऐसा ही है जैसे कोई चोर अपने स्वार्थ के लिए कहीं चोरी करे और पुलिस द्वारा बन्दी बन कर जेल के भीतर पहुंच जाये। ईश्वर सर्वान्तरयामी होने से हमारे प्रत्येक अच्छे व बुरे कर्म को जानता है, अतः उसे हमारे कर्मों के फल देने में कहीं किंचित भी कठिनाई नहीं है। हम अपनी अज्ञानता से इस तथ्य व रहस्य को भूले हुए होते हैं। शुभ कर्मों का फल सुख व अशुभ कर्म जिन्हें पाप भी कहा जाता है, दुःख के रूप में अवश्यमेव भोगना पड़ता है। सत्य वद धर्म चर का व्रत लेकर हम असत्य अर्थात् अशुभ कर्मों से बच सकते हैं। असत् कर्मों के त्याग व सत्कर्मों के आचरण से हमारे दुःखों की निवृति हो जायेगी और हम केवल सुख ही सुख प्राप्त होंगे। सत्य वद् के साथ जो धर्म चर है उसका अर्थ भी सत्य का आचरण ही है। सत्य एवं धर्म शब्द एक प्रकार से एक दूसरे का पर्याय है। धर्म शब्द में सत्य शब्द भी एक प्रकार से निहित है। धर्म का अर्थ होता है श्रेष्ठ मानवीय गुणों को मनुष्य जीवन में धारण करना। यह ऐसा ही है जिस प्रकार से अग्नि ने ताप व प्रकाश को धारण किया है और जल ने शीतलता को धारण किया हुआ है। अग्नि व जल अपने इन गुणों का किन्हीं भी परिस्थितियों में त्याग नहीं करते। ऐसा ही हम मनुष्यों के लिए भी करणीय है।

मनुष्यों को धारण करने योग्य श्रेष्ठ मानवीय प्रमुख गुण कौन-कौन से हैं तो इसका उत्तर है कि स्वार्थ त्याग कर दूसरे प्राणियों को सुख पहुंचाने के लिए जो कर्म किए जाते हैं उन्हें धर्म कह सकते हैं। अपने शरीर की रक्षा व इसकी उन्नति मनुष्य का पहला धर्म है। सामाजिक उन्नति भी मनुष्य धर्म के अन्तर्गत आती है। इसके साथ अपनी आत्मा की उन्नति भी मनुष्य का धर्म है। यह आत्मा की उन्नति व अन्य सभी उन्नतियां सत्य को धारण करने से होती हैं। सत्य के धारण में ईश्वर के सत्यस्वरूप का ज्ञान प्राप्त करना और उसके अनुरूप आचरण अर्थात् ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना व उपासना करना मनुष्य का धर्म है। इसलिए कि ईश्वर ने हमारे लिए यह संसार बनाया, सुख के पदार्थ बनाकर हमें निःशुल्क प्रदान किये हैं, हमारा शरीर व इसमें सुखकारी इन्द्रिय आदि बनाकर हमें प्रदान की हैं, हमें माता-पिता-आचार्य-विद्वान, बन्धु, मित्र व कुटुम्बी जन आदि प्रदान किये हैं। संस्कृत भाषा व सत्य ज्ञान वेद दिया है। हमें जीवन की उन्नति के अवसर देने के साथ दुःखों की पूर्णतया निवृति के उपाय वेद में बतायें हैं। ईश्वर की स्तुति, प्रार्थना, उपासना करना कृतज्ञता का प्रकाश करना है और न करना कृतघ्न या महापापी होना है इसी प्रकार से वायु शुद्धि, निरोग व स्वस्थ जीवन तथा अन्य प्राणियों के पोषण के लिए यज्ञ करना भी युक्ति व तर्क सिद्ध है। इसके साथ माता-पिता-आचार्य व विद्वानों की सेवा व संगतिकरण करना भी हम सब मनुष्यों का धर्म सिद्ध होता है। सभी प्राणियों की रक्षा व पालन भी प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य-धर्म है। विद्वान अतिथियों की सेवा करने से हमारा अज्ञान व शंकायें दूर होती है, अतः ऐसे अतिथियों का सत्कार करना भी धर्म है। इस प्रकार से धर्म को जानकर हम धर्म चर का साक्षात उदाहरण बन कर जीवन को सफल कर सकते हैं।

अपनी बात समाप्त करते हुए हम यह कहना चाहते हैं कि एक दिन हम सभी की मृत्यु होनी निश्चित है। अतः हमें ऐसे कार्य करने चाहिये जिससे हमारा सारा जीवन सुखी हो और मृत्यु के बाद अविनाशी और अमर आत्मा का कल्याण हो। यह सत्यंवद धर्मचर से निश्चित रूप से होता है। हमें मृत्यु के क्षणों में पछताना नहीं होगा अपितु हम प्रसन्नता से मृत्यु का वरण कर सकेगें। सरल शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि सत्य को जानना, स्वयं मानना, दूसरों को जनाना व मनवाना भी मनुष्य धर्म के अन्तर्गत आता है। सत्य के ग्रहण करने और असत्य को छोड़ने में सर्वदा सबको उद्यत रहना चाहिये। मनुष्य को अपने सभी कार्य सत्य व असत्य का विचार करके करने चाहिये। सबसे प्रीतिपूर्वक, धर्मानुसार, यथायोग्य वर्तना चाहिये, अविद्या का नाश तथा विद्या की वृद्धि करनी चाहिये, हमें केवल अपनी ही उन्नति में सन्तुष्ट नहीं रहना चाहिये अपितु सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझनी चाहिये। महर्षि दयानन्द एवं अन्य कुछ महापुरूषों से हम इस प्रकार की शिक्षा ले सकते हैं। यह सभी बाते ‘धर्म-चर’ के अन्तर्गत आती हैं। गीता में जीवन को धर्मक्षेत्रे कुरूक्षेत्रे कहा गया है। यह हमारा जीवन धर्म करने का क्षेत्र और कर्म करने का क्षेत्र अर्थात् स्थान है। यहां हमें धर्म और धर्मानुसार सभी कर्म करने हैं। इसी से हमारा जीवन सार्थक होगा। इसी के साथ, नये वर्ष की सभी पाठकों को बधाई देते हुए लेखनी और लेख को विराम देते है।

भरोसा कर तू ईश्वर पर तुझे धोखा नहीं होगा।

यह जीवन बीत जायेगा तुझे रोना नहीं होगा।।

-ममोहन कुमार आर्य

2 thoughts on “नए वर्ष 2015 का स्वागत ‘सत्यं वद धर्म चर’ का शाश्वत संकल्प लेकर करें

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    अच्छा लेख लेकिन हर साल यही होता है कि लोग new year new resolution की बातें करते हैं लेकिन कुछ दिनों के बाद सभी भूल जाते हैं . आप के लेख के मुताबक हर इंसान कुछ न कुछ दूसरों के लिए कर सके तो यही सच्चा मार्ग है . अभी परसों की बात है मेरे एक रिश्तेदार पती पत्नी जो यहाँ के ही पड़े लिखे हैं वोह कम्बल , भारी कपडे और खाने की चीज़ें उन लोगों के लिए इकठी कर रहे थे जो इस कड़ी सर्दी में दुःख उठा रहे हैं . यह इंग्लैण्ड में ही है जो बेघर लोग हैं , बहुत दुःख उठा रहे हैं . मेरी पत्नी ने भी बहुत कपडे और बिस्कुट ब्रैड आदी इकठे कर के दिए . दो गाड़िओं में सारा सामान गिया . जब सारा सामान चला गिया तो मेरी मिसज़ के चेहरे पर एक ख़ुशी की लहर झलक रही थी . मैं सोच रहा था कि गुरदुआरे मंदिर में पूजा करने की वजाए यह सोशल वर्क ही उतम काम है .

    • Man Mohan Kumar Arya

      आपके कमेंट्स के लिए हार्दिक धन्यवाद। त्याग करने से ही सच्चा सुख मिलता है। परोपकार, सेवा तथा निराश्रितों को दान देने में जो त्याग किया जाता है उसका परिणाम ही सुख होता है। कर्तव्यपालन में भी सुख की अनुभूति होती है। पूजा का अर्थ सत्कार करना होता है। यह दान, परोपकार एवं सेवा भी प्रायः पीड़ितों के प्रति की जाती है अतः यह उनका सत्कार होने से सच्ची पूजा है जिसका फल करने वालों को क्रिया करने के साथ साथ ही मिल जाता है। आपका बहुत बहुत धन्यवाद। कृपया अपना ईमेल मुझे मेरे ईमेल :manmohanarya@gmail.com पर भेजने की कृपा करें।

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