कविता

ये तूफ़ान मेरी व्यथा ……

मैं समुद्र हूँ
मेरे आगोश में
कितनी ही कश्तियाँ तफ़री करती हैं
मैं इनसे प्यार करता हूँ

जब लहरें आती हैं
मेरे मन की ख़ुशी
मध्धम हवाओं के साथ
सिर्फ़ मेरा नहीं
इन कश्तियों का भी दिल
जीत लेती हैं

और मैं आन्नदित लहरों में
इन्हें आगोश में लिये
कहीं खो जाता हूँ

जब तूफ़ान आते हैं
जिंदगी और मौत के
सामान आते हैं
कश्तियों को डर तो लगता होगा
कई कश्तियाँ तो डूब जाती हैं
अफ़सोस ….
काश में उन्हें समझा पाता
ये मैं नहीं मेरी मजबूरीयां है
मेरे बस नहीं
कि तूफ़ान आते है
हवाओं से पुछो
वोह क्यों उफ़ान लाते हैं

मगर तूफ़ान अजीब हैं
मुझ से खेलते हैं
मुझे उत्तेजित करते हैं
और मेरे आगोश में
जो मेरा प्यार होता है
उसे बर्बाद कर के
हमेशा के लिये खामोश करते हैं

कितनी विडम्बना है
मेरे ही दोस्त
मेरे प्यार को
मुझ में ही डुबो के
उद्घोष करते हैं

……..इंतज़ार

2 thoughts on “ये तूफ़ान मेरी व्यथा ……

  • विजय कुमार सिंघल

    एक और अच्छी कविता ! बधाई !!

    • इंतज़ार, सिडनी

      विजय जी आभार ……सादर

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