कविता

क्षणिकाएँ

बेटियाँ होती
है गर
देवी स्वरूप
फिर क्यों
निगल जाता
दहेज़ कुरूप
“““““`
छुईमुई सी धूप
उतरी धरा पर
इन्द्रधनुषी तूलिका संग
भर नव जीवन
अलसाई सी कलियाँ
हँसी खिलखिलाई ।
““““““““
है नादान
मोहब्बत तेरी
कभी हाँ
तो
कभी न
कभी
बेपनाह इश्क
की बरसात
तो कभी
तन्हाई के हालात ।

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गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

2 thoughts on “क्षणिकाएँ

  • गुंजन अग्रवाल

    shukriya vijay bhai …

  • विजय कुमार सिंघल

    बहुत अच्छी क्षणिकाएं !

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