शिशुगीत

शिशुगीत – 3

१. चिड़ियाघर

जब भी छुट्टी आती है

हम चिड़ियाघर जाते हैं

भालू, चीता, टाइगर देख

हँसते हैं, मुस्काते हैं

 

२. कबूतर

उजला भी चितकबरा भी

कई रंगों में आता है

करे गुटरगूँ दाने चुग

मुझे कबूतर भाता है

 

३. बिल्ली

दबे पाँव ये धीरे-धीरे

चली किचेन में आती है

रखी सारी दूध-मलाई

पल में चट कर जाती है

बिल्ली मौसी म्याऊँ-म्याऊँ

बोले चूहों को दौड़ाऊँ

 

४. कुत्ता

भौं-भौं करता, पूँछ हिलाता

बदमाशों को दूर भगाता

मेरा पप्पी प्यारा-प्यारा

बिस्किट, रोटी मन से खाता

 

५. कूलर

ठंढी-ठंढी हवा चलाए

गरमी में सर्दी ले आए

डाल बर्फ दो थोड़ी इसमे

रातों में कंबल ओढ़ाए

*कुमार गौरव अजीतेन्दु

शिक्षा - स्नातक, कार्यक्षेत्र - स्वतंत्र लेखन, साहित्य लिखने-पढने में रुचि, एक एकल हाइकु संकलन "मुक्त उड़ान", चार संयुक्त कविता संकलन "पावनी, त्रिसुगंधि, काव्यशाला व काव्यसुगंध" तथा एक संयुक्त लघुकथा संकलन "सृजन सागर" प्रकाशित, इसके अलावा नियमित रूप से विभिन्न प्रिंट और अंतरजाल पत्र-पत्रिकाओंपर रचनाओं का प्रकाशन

2 thoughts on “शिशुगीत – 3

  • Man Mohan Kumar Arya

    सरल, सुबोध, मनभावन शिशु गीत जो बड़ो को भी आकर्षित करते हैं। आपकी हिंदी सेवा के लिए आपका अभिनन्दन एवं बधाई।

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छे सरल शिशु गीत !

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