कविता

मुक्तक

कोई ख़ुशी की पनाह में दुखी कोई गम की पनाह में सुखी
जिंदगी का अजीब सिलसिला न तू खुशनसीब न मै बदनसीब
वीरानों में गुज़र जाने दो ज़िन्दगी,ख्यालों में न आया करो
नाकाम मोहब्बत का दर्द, लिखा जो है अपने नसीब ।

gunjan

गुंजन अग्रवाल

नाम- गुंजन अग्रवाल साहित्यिक नाम - "अनहद" शिक्षा- बीएससी, एम.ए.(हिंदी) सचिव - महिला काव्य मंच फरीदाबाद इकाई संपादक - 'कालसाक्षी ' वेबपत्र पोर्टल विशेष - विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं व साझा संकलनों में रचनाएं प्रकाशित ------ विस्तृत हूँ मैं नभ के जैसी, नभ को छूना पर बाकी है। काव्यसाधना की मैं प्यासी, काव्य कलम मेरी साकी है। मैं उड़ेल दूँ भाव सभी अरु, काव्य पियाला छलका जाऊँ। पीते पीते होश न खोना, सत्य अगर मैं दिखला पाऊँ। छ्न्द बहर अरकान सभी ये, रखती हूँ अपने तरकश में। किन्तु नही मैं रह पाती हूँ, सृजन करे कुछ अपने वश में। शब्द साधना कर लेखन में, बात हृदय की कह जाती हूँ। काव्य सहोदर काव्य मित्र है, अतः कवित्त दोहराती हूँ। ...... *अनहद गुंजन*

One thought on “मुक्तक

  • विजय कुमार सिंघल

    मुक्तक कुछ और बेहतर हो सकता था. कम से कम तुकांत तो होना चाहिए. वैसे उसके भाव अच्छे हैं.

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