कविता

मुक्तक-नूतन

मापनी- 2222 2222 2222 122 

नूतन सा पल हो नूतन सा कल हो नूतन सफल हो,
नूतन सा नभ हो नूतन सा थल हो नूतन सजल हो,
नूतन अवसर में नूतन सरगम में नूतन कदम में,
नूतन सा मन हो नूतन सा तन हो नूतन सकल हो।

दिनेश”कुशभुवनपुरी”

4 thoughts on “मुक्तक-नूतन

  • विजय कुमार सिंघल

    वाह !

    • दिनेश पाण्डेय 'कुशभुवनपुरी'

      हार्दिक आभार आदरणीय

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    बहुत खूब .

    • दिनेश पाण्डेय 'कुशभुवनपुरी'

      सादर आभार आदरणीय

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