बाल कविता

बालगीत – “अपना बचपन अपनी दुनिया”

किसी की टॉफी कोई छीने

किसी की चोटी कोई खींचे ,

हँसता मुन्ना , रोती मुनिया

अपना बचपन अपनी दुनिया |

अटक – अटक कर रटे ककहरा

समझ  नही  आता अलजबरा ,

लिये हाथ मे पटरी – गुनिया

अपना बचपन अपनी दुनिया |

कभी तो  रोते , कभी हैं गाते

बात – बात हँसते – मुस्काते ,

बजा  रहे  बैठे  झुनझुनिया ,

अपना बचपन अपनी दुनिया |

 

 

अरविन्द कुमार साहू

सह-संपादक, जय विजय

2 thoughts on “बालगीत – “अपना बचपन अपनी दुनिया”

  • विजय कुमार सिंघल

    अच्छी बाल कविता ! बचपन की दुनिया ही निराली होती है.

  • बचपन में खो गिया भाई !

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